परीक्षार्थी और परीक्षा आयोजक संस्था दोनों अगर परीक्षा से पहले ही प्रश्नपत्र के बजाय परीक्षा केंद्र की विसंगतियों के कारण चर्चा और तनाव में हों तो समझा जाना चाहिए कि परीक्षा अपने उद्देश्य की कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही है। रेलवे भर्ती बोर्ड की सहायक लोको पायलट और तकनीशियन की नौ अगस्त को होने वाली परीक्षा को देख कर तो कम से कम ऐसा ही लगता है। यह परीक्षा आयोजित होने से पहले ही परीक्षार्थियों को 2000 किलोमीटर दूर मिले परीक्षा केंद्रों के कारण चर्चा में आ गई है। रेलवे का कहना है कि अपेक्षा से अधिक संख्या में आवेदन पत्र आने और संबंधित राज्यों में इतनी बड़ी संख्या में ऑनलाइन परीक्षा केंद्र उपलब्ध न होने से यह स्थिति पैदा हुई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान के परीक्षार्थियों को अपने गृह नगर से करीब 2000 किलोमीटर दूर परीक्षा केंद्र आवंटित होने से वहां पहुंचना इन गरीब और मध्यम आय वर्गीय परिवारों के बेरोजगार आवेदकों के लिए एक नई मुसीबत बन गया है।

संसद में मामला उठने के बाद रेलवे ने अपनी सफाई देते हुए एक विज्ञप्ति में यह तो स्वीकार किया कि 17 प्रतिशत यानी करीब पौने तीन लाख आवेदकों को 500 किलोमीटर से अधिकार दूर परीक्षा केंद्र आवंटित किए गए हैं लेकिन समस्या समाधान के लिए कोई संशोधन रेलवे भर्ती बोर्ड जारी नहीं कर सका। उल्लेखनीय है कि रेलवे द्वारा इन 26502 पदों के लिए ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने की अधिसूचना के बाद इन पदों के लिए करीब 47 लाख से अधिक आवेदन पत्र प्राप्त हुए। ऑनलाइन और पारदर्शी परीक्षा के लिए जरूरी तकनीकी सुविधाओं से युक्त परीक्षा केंद्रों की इतनी बड़ी तादाद में उपलब्धता न होने का नतीजा यह हुआ कि इन परीक्षार्थियों को अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर परीक्षा केंद्र आवंटित कर दिए गए। जैसे बिहार से हैदराबाद, बंगलुरु, चेन्नई और मोहाली तथा बंगलुरु से भोपाल आदि। इतनी दूर परीक्षा के लिए जाने और आने में परीक्षार्थियों को न केवल एक सप्ताह का समय लगेगा बल्कि करीब तीन से चार हजार रुपए का खर्च भी आएगा जिसे वहन करने में ये परीक्षार्थी अपने आपको असमर्थ महसूस कर रहे हैं।

ऐसे में चार साल से इन परीक्षाओं की तैयारी में अपने श्रम का पसीना बहा रहे परीक्षार्थियों के लिए एन परीक्षा से पहले एक नया तनाव उत्पन्न हो गया है। अगर दूरी की समस्या के कारण ये करीब तीन-चार लाख परीक्षार्थी परीक्षा में शामिल नहीं होते हैं तो रेलवे को तो बैठे ठाले 100 रुपए प्रति परीक्षार्थी के हिसाब से आवेदन पत्र शुल्क की करोड़ों की राशि बिना श्रम मिल जाएगी। लेकिन उन परीक्षार्थियों की हालत का कौन जिम्मेदार होगा जिन्हें नौकरी का सपना चूर होने और परिश्रम बेकार जाने का दोहरा फटका लगेगा? अगर रेलवे भर्ती बोर्ड चाहे और सरकार इस मामले में थोड़ी संवेदनशीलता दिखाए तो परीक्षा तिथि को थोड़ी आगे बढ़ा कर इन परीक्षार्थियों को अपने प्रदेश में ही परीक्षा केंद्र उपलब्ध करा कर उनकी एक बड़ी समस्या का समाधान कर सकता है। ऐसा करने से ऑनलाइन परीक्षा का उद्देश्य भी पूरा हो जाएगा और कोई परीक्षार्थी इन परीक्षाओं से वंचित भी नहीं होगा। वैसे भी ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने और उसके लिए राज्यों में पर्याप्त परीक्षा केंद्र उपलब्ध न होने की समस्या ाका खमियाजा बेरोजगार परीक्षार्थी क्यों भुगतें?

देवेंद्र जोशी, महेशनगर, उज्जैन