पानी इंसान और धरती पर रहने वाले दूसरे जीवों के लिए कुदरत की ओर से दिया गया सबसे बड़ा उपहार है। धरती पर रहने वाले हर जीव को पानी चाहिए और इस जरूरत को बरसात पूरा करती है। अगर समय पर बरसात न आए तो सभी को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। इंसानों को और जानवरों को पीने के लिए पानी चाहिए, किसानों को खेती के लिए पानी चाहिए, कारखानों, कुम्हारों को मिट्टी के बर्तन बनाने में पानी चाहिए।
इस धरती पर कोई भी ऐसा प्राणी नहीं है, जिसे पानी नहीं चाहिए और पानी के लिए बारिश का होना जरूरी है। अगर मानसून आने में देरी हो जाए तो जगह-जगह पर हवन होने लगते हैं, भंडारे होने लगते हैं, ताकि इंद्र देवता प्रसन्न होकर बारिश करके धरती की प्यास बुझाएं! यह अंधविश्वास है, लेकिन इससे लोगों के सरोकार का पता चलता है।
बारिश से लोगों को गर्मी से तो राहत मिलती ही है, धरती की प्यास भी बुझती है। फिर धरती हमारी प्यास बुझाती है। बारिश को लेकर बहुत से दिल को सुकून देने वाले गीत भी बने हैं। लेकिन जब बारिश आती है तो सड़कों पर गलियों में जलभराव की समस्या पैदा हो जाती है। पानी की सही निकासी न होने की वजह से शहरों की सड़कें और मोहल्लों की गलियां तालाब बन जाती हैं। जानमाल का तो नुकसान होता ही है।
नालियों की गंदगी सड़कों पर आ जाती है, मच्छर पैदा हो जाते हैं, बीमारियां फैलने लगती हैं। आम आदमी को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। बारिश में अगर सड़कें तालाब बनती है या हमें जलभराव का सामना करना पड़ता है तो उसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं! नालियों और तालाबों पर हमने ही भ्रष्ट प्रशासन की मदद से नाजायज कब्जे करके कंक्रीट के घर खड़े किए हैं, जहां से पानी की निकासी हो सकती है।
हमने उन रास्तों पर प्लास्टिक की थैलियां और दूसरी तरह की गंदगी डालकर वहां से पानी निकलने का रास्ता बंद कर दिया है। अब इन सबका परिणाम हमें ही भुगतना पड़ेगा। लेकिन इन परेशानियों के लिए बारिश को तबाही की बारिश नहीं कहा जाना चाहिए। बारिश हमेशा जीवन देने वाली होती है। इंसान और प्रशासन के भ्रष्टाचार और लापरवाही को कुदरत पर डालना ठीक नहीं है। हम सबकी जिम्मेदारी बनती है।
चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली।
जनता की जिम्मेदारी
भारतीय रेलवे में रोजाना आस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर लोग सफर करते हैं। इससे देश के विशाल रेल नेटवर्क और भारतीयों के दैनिक जीवन मे रेलवे के महत्त्व का पता चलता है, लेकिन दूसरी ओर इसी रेल नेटवर्क मे सफर करने वाले यात्री रेलवे को नुकसान पहुंचाने के साथ तकिये, कंबल, चादर, पंखे, लाइट चोरी करना, बेटिकट यात्रा करना, गंदगी फैलाना एक तरह से अपना काम मानते हैं।
यह चिंता तभी दूर होगी जब रेलवे के ग्राहक भी ईमानदारी से रेलवे के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझेंगे, अपने कर्तव्यों की पालना कर रेलवे को स्वच्छ, सुंदर और सुरक्षित बनाने में अपने हिस्से का योगदान सुनिश्चित करेंगे। अन्यथा कितनी भी सुविधाएं दे दी जाएं, हमेशा सुविधाओं की कमी का अहसास ही होगा।
कपिल एम वडियार, पाली, राजस्थान।
नशे का जाल
नशा हमारे देश के लिए ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। दुनिया में जो सामाजिक अपराध बढ़ रहे हैं, इसका मुख्य कारण नशा भी है। हमारे देश में भी नशा नासूर बन गया है। देश के विकास में युवा वर्ग का सबसे बड़ा योगदान होता है। स्वस्थ और तंदुरुस्त युवा देश को विकास को रफ्तार दे सकते है। लेकिन बहुत अफसोस की बात है कि आज भारत के कुछ युवा नशे के आदी होकर अपनी जिंदगी को नरक बना रहे हैं। नशा नाश का दूसरा नाम है। जिसने भी नशे का दामन एक बार पकड़ लिया, उसे नशा मौत के मुंह तक भी ले जाता है। साथ ही उसके घर-परिवार का भी कई बार नाश कर देता है।
नशा जानलेवा, घर-परिवार बर्बाद करने वाला भी है, फिर भी न जाने क्यों कुछ लोग नशे को गले लगाने से बाज नहीं आ रहे? खासतौर पर कुछ युवा नशे को गले लगा अपनी तो जिंदगी बर्बाद करने के साथ अपने मां-बाप के अरमानों को चकनाचूर कर रहे। युवाओं को यह भी याद रखना चाहिए कि नशा न तो कोई फैशन है और न ही किसी दुख की दवा।
आज हमारे देश में जो अपराध और अनैतिक काम बढ़ रहे उनका मुख्य कारण नशा भी है। नशा इसके आदी इंसान की बुद्धि भ्रष्ट कर देता है। यह समाज के लिए भी अभिशाप है। नशे पर लगाम कसने के लिए समाज को एकजुट होना पड़ेगा, समाजसेवी संस्थाओं को आगे आना पड़ेगा। मीडिया को भी इसके लिए विशेष अभियान चलाना चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर।
असंतुलित पर्यावरण
पिछली सदी के नब्बे के दशक में वैश्वीकरण आने के बाद भारत के बाजारों को व्यापकता मिली। आयात और निर्यात की नई संभावनाएं सामने आर्इं। ऐसे में विकास को रफ्तार मिली। मगर विकास की गति में प्रकृति को ताक पर रख दिया गया। तकनीकी विकास ने पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचाई। अधिक उद्योग के कारण वातावरण और नदियां प्रदूषित हुर्इं। जनसंख्या बढ़ने से लोगों के ऐशो आराम की जरूरत पूरा करते हुए वायु प्रदूषण बढ़ा। साथ ही अधिक से अधिक प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग बढ़ा।
इन परिस्थितियों से गुजरने के बाद आज प्रकृति काफी ज्यादा असंतुलित बन चुकी है। यहीं कारण है कि बेमौसम बरसात, बेमौसम ठंड और बेमौसम गर्मी देखने को मिलती है। मानसून अपने वास्तविक समय पर न आकर विलंब से शुरू होती है। इसी देश में कुछ जगहों पर प्रकृति अपने पूरे शबाब में नजर आती है, मगर कई इलाकों में हवा इतनी प्रदूषित है कि सांस लेना भी मुश्किल होता है। ऐसे में यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि प्रकृति में संतुलन बनाए रखने की कोशिश करें।
अंकित श्वेताभ, दिल्ली।