कोरोना से जूझ रहे दिल्ली-एनसीआर और पूरे उत्तर भारत के लिए एक और नई मुसीबत आने वाली है और वह मुसीबत है पराली का खतरनाक धुआं। यह हर साल अक्तूबर के महीने में पूरे उत्तर भारत के लोगों के लिए बड़ी मुसीबत बन कर आता है और लोगों के लिए सांस लेना भी दूभर हो जाता है। लेकिन इस बार कोरोना काल में पराली का यह धुआं और भी जानलेवा और खतरनाक हो सकता है। इससे दमा और कैंसर के अलावा भी कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। अगर हर साल की तरह इस साल भी पराली जलाए जाते रहे तो कोरोना के साथ पराली का धुआं और प्रदूषण की चादर दोहरी मार करेगी।

हालांकि इस वर्ष सरकार इस विषय को लेकर गंभीर दिखाई दे रही है। पिछले साल सरकार के तरफ से यह आश्वासन भी दिया गया था कि अगर किसान अपने खेतों की पराली नहीं जलाते हैं तो उन्हें प्रति एकड़ एक हजार से ढाई हजार रुपए तक का मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन क्या यह आश्वासन पूरा हुआ? फिर इस साल पराली न जलाने के लिए सबसिडी और मशीनें देने की बात है, लेकिन डीजल महंगा होने और आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से किसान पराली जलाने को मजबूर हैं।

वैज्ञानिकों द्वारा तैयार बायो डी-कंपोजर तकनीक को पराली का समाधान के रूप में करना चाहिए। इस बारे में पंजाब के किसानों में जागरूकता फैलाने की जरूरत है।
’बलराम साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़