सरकार कोई भी हो, दो साल का कार्यकाल उसकी दशा और दिशा बताने के लिए पर्याप्त है। मोदी सरकार एक बड़ी जीत और कहीं बड़े-बड़े वादों के नारों के साथ सत्ता में आई थी। यह भी सच है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यभार संभालते ही बदलाव के लिए ऐसी नीतियों पर अमल शुरू किया जिनसे विकास पथ पर चला जा सके। उन्होंने सरकार की बंधी-बंधाई सीमाओं से आगे निकल कर काम करने की जो कोशिश की वह काबिले तारीफ है। लेकिन सारी तारीफ अगर कोशिशों को ही मिल जाए तो सफल परिणामों का क्या होगा? सरकार हर जगह ऐसी नीतियां बनाती दिखी जिनसे उसे ‘गेम चेंजर’ नहीं बल्कि ‘नेम चेंजर’ की उपाधि से सम्मानित किया जा सकता है। चाहे नीति आयोग हो, स्वच्छ भारत अभियान हो या कुछ सड़कों के नामों में बदलाव, सरकार ने इन कामोंं को बखूबी अंजाम दिया। उसका हर बड़ा नेता सक्रिय दिखाई दिया पर यह सक्रियता अपने काम, मूल समस्याओं या जिम्मेदारी के लिए नहीं बल्कि कैमरों के लिए दिखाई गई।

यूपीए सरकार के समय हुए भ्रष्टाचार की जो बातें सामने आर्इं उनका श्रेय कैग और कुछ आंदोलनों को जाता है। यूपीए के सारे घोटालों का फायदा केवल राजग को मिला। राजग महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और भ्रष्टाचार के मुद्दों को आधार बना कर सत्ता में आया। यूपीए सरकार के समय चना, अरहर, उड़द और मसूर दलों की कीमतें क्रमश: 47, 74, 75 और 70 रुपए प्रतिकिलो थीं। पर आज क्या हाल है? मई 2016 में इन दालों की कीमतें क्रमश: चना 83, अरहर 180, उड़द 200, मसूर 100 रुपए प्रतिकिलो है। चीनी, फल-सब्जी और दूध सभी के दामों में आए दिन वृद्धि होती है। महंगाई के मुद्दे पर न तो स्वयं प्रधानमंत्री और न उनकी सरकार का कोई नेता गंभीर दिखाई पड़ता है। बेरोजगारी भारत की एक बड़ी समस्या है। नौजवानों को रोजगार चाहिए। हर वर्ष दो करोड़ रोजगार देने के वादों पर राजग ने वोट तो लिए पर रोजगार नहीं दिए। 2014-15 में पांच लाख इक्कीस हजार रोजगार मिले जबकि 2015-16 में मात्र 96 हजार। दोनों वर्ष का आंकड़ा देखने पर तो राजग को इस मुद्दे पर बगलें झांकना चाहिए।

हर नेता और भारतीय नागरिक देश में विकास और बदलाव की बात करता या सुनता नजर आता है। हाल ही में स्वयं मोदी ने यूपी में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि देश बदल रहा है। सही कहा, पर यह कमजोर स्थिति में बदल रहा है। देश की सरकार न तो रोजगार दे पा रही है और न ही रुपए और सूचकांक की गिरावट को रोकने के लिए कोई प्रभावी पहल कर पा रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी मेहनत और विचारों से तो संतुष्ट होकर बदलाव की बात करते हैं पर उनके विचारों में जो बदलाव संघ द्वारा कराए जाते हैं उनसे मोदी और उनकी सरकार का ग्राफ जनता के बीच गिरता जा रहा है। अगर अभी भी समय रहते अपने वादों पर ध्यान केंद्रित कर लें तो भारत की मूल समस्याओं का हल निकाला और परियोजनाओं से लोगों को लाभान्वित किया जा सकता है। इससे प्रधानमंत्री और सरकार की साख भी बच सकती है।

हसन हैदर, जामिया, नई दिल्ली</strong>