‘रोजगार की सूरत’ (संपादकीय, 10 अगस्त) पड़ा। कोरोना संकट के चलते लगातार डेढ़ साल तक बेरोजगारी की मार झेलते गरीब वर्ग और मध्यम वर्ग की कमर टूट गई है! शासकीय नौकरियों को छोड़ कर बाकी सभी क्षेत्रों में लोग बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए हैं। उस पर विदेशों से आए हुए भारतीय नौकरी ढूंढ़ रहे हैं! महिलाओं की हालत और भी बदतर हुई है। गरीब और मध्यम वर्ग परिवारों के लिए दो जून की रोटी का बंदोबस्त करना ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य बन गया है। अन्य सुख-सुविधा और आराम के बारे में तो वे सोच भी नहीं सकते।
सरकार करोड़ों-अरबों की योजनाएं परोस रही है, मगर आम जन के मुंह में एक निवाला भी नहीं आ रहा। उस पर तीसरी लहर का आसन्न खतरा सभी को मानसिक रूप से भयग्रस्त किए हुए है। एक सर्वेक्षण के अनुसार पूर्णबंदी के बाद से लोग बड़ी संख्या में मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं, तो बहुत सारे लोग अवसाद के शिकार हो रहे हैं। बाजार मंदी की चपेट में हैं, तिस पर पेट्रोलियम पदार्थ व खाद्य पदार्थों के आसमान छूते भावों ने आग में घी का काम किया है। ऐसी स्थिति से उबरने में अभी लंबा वक्त लगेगा। कई देशों में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो गया है! इसलिए सरकार को पर्याप्त भंडारण करके रखना चाहिए और सामान्य जनों को सरकारी नौकरियों का भरोसा छोड़ कर अपने खुद के बलबूते पर ही कमा कर खाने की व्यवस्था करना चाहिए।
’विभुति बुपक्या, आष्टा मप्र