कुछ दिनों पहले संसद से पारित तीन कृषि बिलों का विरोध जोर पकड़ता जा रहा है। हरियाणा, पंजाब, ,उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों से किसान दिल्ली की तरफ कूच कर गए हैं। किसानों और सुरक्षा बलों के बीच दिल्ली व हरियाणा की सीमाओं में संघर्ष भी हुआ। हालांकि अब दिल्ली पुलिस उन्हें दिल्ली आकर प्रदर्शन करने की अनुमति दे दी है, सरकार का यह कदम निश्चित रूप से सराहनीय है।

लेकिन सवाल है कि क्या यह विरोध प्रदर्शन देशव्यापी हैं? उत्तर है, नहीं। इस प्रदर्शन का प्रसार मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान की कुछ हिस्सों से है। आखिर इसका कारण क्या है? इन किसानों की आपत्ति क्या है? इस कृषि कानून का मुख्य उद्देश्य है कि राज्य कृषि मंडियों के एकाधिकार को खत्म किया जाए और कृषि विपणन में निजी निवेश को भी आकर्षित किया जाए। किसानों को डर इस बात का है कि कहीं निजी उद्योगपतियों के प्रवेश के बाद उनकी एमएसपी नामक सुरक्षा खत्म न हो जाए।

इसलिए उनकी मुख्य मांग यह है कि किसी कानून में सरकार की तरफ से एमएसपी की गारंटी दी जाए, अर्थात एमएसपी को कानूनी अधिकार बनाया जाए। सवाल यह उठता है कि क्या पहले एमएसपी कानूनी अधिकार था? इसका जवाब भी नहीं में है। परंतु पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में सरकारी खरीद की व्यवस्था अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर थी, इसलिए यहां के किसान अन्य राज्यों की तुलना में अधिक आक्रोशित हैं। एक आंकड़े के अनुसार बानवे फीसद सरकारी खरीद हरियाणा और पंजाब से होती है। यह इस बात का जवाब है कि आंदोलन के केंद्र ये दो राज्य क्यों हैं।

इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि एमएसपी को कानूनी दर्जा देने की मांग कितनी वाजिब है? प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि राज्य मंडी की व्यवस्था और एमएसपी की सुविधा किसानों के लिए पहले की तरह जारी रहेगी। शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार देश के मात्र छह फीसद किसानों को एमएसपी की सुविधा मिल रही है। शेष किसान ओने-पौने दामों पर अपनी फसल को बेचने को मजबूर हैं।

किसान अपनी लागत मूल्य को भी नहीं निकाल पा रहे हैं। उदाहरण के रूप में, वर्तमान में धान का एमएसपी 1860 रुपए है, जबकि किसानों को 800 या 1000 रुपए प्रति क्विंटल में ही अपना धान बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारे देश के अन्नदाता खेती करना छोड़ देंगे, जिसका परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ेगा। सरकार यह क्यों नहीं सुनिश्चित कर पा रही है कि देश के प्रत्येक किसान को एमएसपी मिले, जिसके लिए वह एक बाध्यकारी कानून लेकर आए जिससे किसानों को लागत मूल्य के साथ-साथ कुछ लाभ भी मिल सकें।
’अभिषेक पाल , अंबेडकर नगर (उप्र)

लापरवाही का नतीजा

कोरोना विषाणु आज भारत सहित दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिए गंभीर चुनौती बन कर खड़ा है। दुनिया भर में इसका प्रकोप तेजी से फैला और उसी से बचाव के लिए भारत सहित अन्य देशों में पूर्णबंदी जैसे सख्त कदम उठाने पड़े। इसका रोजगार और अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा असर पड़ा। सभी स्कूल, कॉलेज अभी तक बंद हैं।

हालांकि पिछले कुछ महीनों से कई क्षेत्रों में पाबंदियों में ढील दी गई है और जनजीवन को पटरी पर लाने की कवायदें जारी हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि हालात अभी सामान्य नहीं हुए हैं और लोग जितनी लापरवाही दिखा रहे हैं, उससे बीमारी फैलने का खतरा कई गुना बढ़ गया है। बाजारों के खुलने का यह अर्थ कतई नहीं थी कि वहां अंधाधुंध भीड़ उमड़ने लगे।

लोग सार्वजनिक स्थानों पर भी महामारी से बचाव के उपायों का पालन नहीं कर रहे हैं। शादी विवाह के अवसर के लिए सरकार ने एक सीमित सदस्य संख्या निश्चित की थी, किंतु अब उसका भी पालन होता नहीं दिखाई दे रहा। सुरक्षित दूरी भी कोई चीज थी, अब ऐसा प्रतीत नहीं होता, क्योंकि लोग निरंतर सरकार के बनाए बचाव संबंधी नियमों का उल्लघंन कर रहे हैं। मास्क नहीं लगा रहे हैं।

पुलिस को देखते ही मास्क लगा लेते हैं। क्या ऐसा करके हम पुलिस को धोखा दे रहे हैं? ये छल पुलिस के साथ न करके आप से कर रहे हैं। अभी इस वैश्विक संकट के प्रति लापरवाही करना बिल्कुल अनुचित है। लापरवाही का नतीजा भयावह होगा।
’काव्यांशी मिश्रा, मैनपुरी (उप्र)