केरल के कथित ‘लव जिहाद’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया। हिंदू से इस्लाम धर्म कबूल करने वाली हादिया अब न मां-पिता के साथ रहेंगी, न अपने पति के साथ। बल्कि वे तमिलनाडु के सलेम में होमियोपैथिक कॉलेज के हॉस्टल में रह कर अपनी पढ़ाई पूरी करेंगी। अदालत ने कॉलेज से हादिया को फिर से दाखिला और हॉस्टल में जगह भी देने का निर्देश दिया है। साथ ही अब उनके अभिभावक कॉलेज के डीन होंगे। इससे पहले चली लंबी सुनवाई में हादिया से जब उनकी मर्जी पूछी गई थी, तो उन्होंने कहा था कि वे अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हैं, लेकिन यह भी चाहती हैं कि पढ़ाई का सारा खर्च उनका पति उठाए, न कि राज्य सरकार। वे अपना अभिभावक भी अपने पति को ही बनाना चाहती हैं। मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने इस पर कहा कि मैं भी अपनी पत्नी का अभिभावक नहीं हूं। पत्नियां चल संपत्ति नहीं होतीं।
लेकिन हादिया के मामले में सवाल यह नहीं है कि उनका अभिभावक कौन हो, बल्कि सवाल यह है कि क्या उन्हें अपनी मर्जी का धर्म मानने और शादी करने का अधिकार है या नहीं! अगर हादिया नाबालिग होतीं तो बेशक उनके अभिभावकों या माता-पिता की मर्जी चलती। लेकिन हादिया चौबीस वर्ष की हैं, फिर भी उन्हें इस्लाम कबूल करने और एक मुसलिम युवक शफीन से शादी करने के मसले पर अदालत के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। एक चौबीस वर्षीय युवती अगर अपना जीवन अपने तरीके से जीना चाहती है तो भारत का संविधान उसे इसकी इजाजत देता है। लेकिन हादिया के मामले में ऐसा नहीं हुआ। उसके विवाह को ‘लव जिहाद’ जैसा नाम दे दिया गया और धर्म के ठेकेदारों ने इस पर काफी राजनीति की। हादिया के पति शफीन के संबंध आईएस से होने के आरोप भी लगाए गए। हादिया के पिता के वकील का भी यह मानना है कि यह ‘लव जिहाद’ का मामला नहीं, बल्कि जबरन धर्म परिवर्तन का मामला है। इस मामले की जांच एनआईए को अगस्त में सौंपी गई। एनआईए ने राज्य में ‘लव जिहाद’ के 89 मामलों की जांच की है। जांच में यह पता चला कि नौ मामलों में इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसे आतंकी संगठनों से किसी न किसी जुड़ाव के संकेत मिले हैं।
एनआईए की जांच में जिन नौ मामलों को कथित ‘लव जिहाद’ का मसला बताया गया, उनका आधार हिंदू लड़कियों के मां-बाप की शिकायत को माना गया और पाया गया कि इन मामलों में संबंध आईएस से था। हालांकि अन्य अस्सी मामलों में किसी भी तरह के सबूत नहीं मिले तो उनकी जांच रोक दी गई। एनआईए ने अदालत को बताया कि कुछ मामले ऐसे हैं जिनमें हिंदू महिलाओं को इस्लाम कबूल करने के लिए फुसलाया गया। लेकिन इनका कोई पुख्ता सबूत पेश नहीं किया गया है। शफीन पर लगे आरोप अभी तक सिद्ध नहीं हुए हैं।
केरल हाईकोर्ट द्वारा शादी रद्द किए जाने के बाद शफीन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसके बाद हादिया को अपने मां-बाप के संरक्षण से मुक्ति मिली है। लेकिन हादिया और शफीन के वैवाहिक जीवन पर अभी प्रश्न-चिह्न बरकरार है। अब देखना यह है कि देश की न्याय-व्यवस्था हादिया के जीवन को उलझाते सवालों का हल किस तरह निकालती है। यह मुद्दा संवेदनशील है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को आगे ऐसी पहल करनी होगी, जिससे इसका सांप्रदायीकरण न हो सके।
’कुशाग्र वालुस्कर, भोपाल</p>