एक ओर दुनियाभर में कोरोना से संघर्ष चल रहा था, दूसरी ओर चीन ने अपने पड़ोसी देशों जापान और भारत के सीमा पर अतिक्रमण का दौर जारी रखा।

गलवान घाटी में दशकों के बाद भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई। हालांकि भारतीय सैनिकों ने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया। चीन की विस्तारवादी नीति पर अंकुश लगाने के लिए जापान की पहल पर क्याड का गठन हुआ, जिससे चीन तिलमिला चुका है।

भारत सहित कई देशों ने चीन के अनेक मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगाया। कई देशों ने अपने आर्थिक गतिविधियों को चीन के साथ कम कर दिया। अनेक विदेशी कंपनियों ने चीन में अपने स्थापित उत्पादन केंद्र को बंद कर लिया।

कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया के स्वास्थ्य सेवाओं को आईना दिखाने का कार्य किया है। दुनिया भर के लोगों ने भारत के प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की शक्ति को पहचाना। आयुर्वेद की बदौलत ही दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत में मानव क्षरण कम हुआ है। भारत ने कोरोना नियंत्रण में दुनिया के समझ एक मिसाल कायम किया है। आगे वाले समय मे भारत दुनिया का पथ-प्रदर्शक बन सकता है।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया, बिहार</p>

आंकड़ा नहीं मनुष्य

‘आंकड़ों में जीवन’ (दुनिया मेरे आगे, 26 दिसंबर) पढ़ते हुए आज के समय की तस्वीर अधिक स्पष्ट हो रही थी। साहित्य से जुड़े होने कारण हमें बखूबी इस बात का अहसास है कि यांत्रिक हो रहे समाज में कब एक मनुष्य एक आंकड़े में तब्दील कर दिया जाए, इसकी आशंका निरंतर बनी रहती है।

सरकार कहती है कि इतने लोग मारे गए, साहित्य कहता है कि एक भी व्यक्ति क्यों मरा। पहले जब लोग अंगुलियों पर गिनती करते थे, तब शायद मनुष्य एक व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए था, लेकिन जैसे-जैसे नए उपकरण, मसलन, कैलकुलेटर, कंप्यूटर आदि गणना करने वाले के साधन आते गए, मनुष्य भी आंकड़ों की तरह पहचाना जाने लगा।

आज तो हर कोई बाजार और सरकार दोनों की नजर में सिर्फ आंकड़ा भर बन कर रह गया है। बाजार के लिए एक उपभोक्ता और सरकार के लिए मतदाता। अगर एक शब्द ‘जनसंख्या’ पर ही विचार करें तो जनों की संख्या के रूप में हम सब आंकड़े नहीं बने हुए हैं! आंकड़ों की खरीद-फरोख्त और निजी आंकड़ों की चोरी और उनका विक्रय भी चलन में है, जिसकी खबरें निरंतर हमें देखने-सुनने को मिलती रहती हैं। बाजार और सरकार तो हमें आंकड़ों के रूप में दशार्ती ही है, इससे पहले कि हमें भी स्वयं को आंकड़े के रूप में देखने की आदत पड़ जाए, सतर्क होना पड़ेगा।
’नवीन सिंह, अलीगढ़ विवि, उप्र

अर्थव्यवस्था के सामने

पिछले करीब दस महीने के इस दौरान देश भर में पूर्णबंदी की स्थिति रही, जिसका सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा। इस आर्थिक चोट से उबरना मुश्किल होगा। सकल घरेलू उत्पाद में दर्ज की गई गिरावट चिंता का विषय बन गया है।

पूर्णबंदी के दौरान जीडीपी रिकॉर्ड के अनुसार 23.9 फीसद गिरावट हुई। डेलॉयट में जारी की गई रिपोर्ट ‘वॉइस आॅफ एशिया’ के मुताबिक 2008 के आर्थिक गिरावट के बाद यह वर्ष सबसे ऊंचे पायदान पर है। दूसरी ओर, संतोषजनक बात यह रही कि अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में भारतीय सकल घरेलू उत्पादक वृद्धि दर 0.1 प्रतिशत दर्ज की गई।

आर्थिक शोध संस्थान के द्वारा किए गए शोध के मुताबिक मौजूदा वित्त-वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में जीडीपी की विकास दर सकारात्मक हो जाएगी। डेलॉयट के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि अगले वित्त-वर्ष 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था में दस फीसद की वृद्धि होगी। आरबीआइ के सचिव द्वारा यह विश्वास जताया गया है कि मौजूदा वित्त-वर्ष 2020-21 की छमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था सकारात्मक विकास करती नजर आएगी।
’निशा कश्यप, हरीनगर आश्रम, नई दिल्ली</p>