आधुनिक और सभ्य समाज में व्यक्तिगत स्तर पर हथियारों की आवश्यकता क्यों बनी हुई है? हथियारों के दुरुपयोग और समाज पर पड़ते नकारात्मक प्रभाव के चलते लाइसेंस जारी करने की नीति पर पुनर्विचार और अवैध हथियारों के विरुद्ध ठोस व प्रभावी कारवाई की सघन आवश्यकता है। आज देश में बड़े पैमाने पर लोगों के पास अवैध हथियार हैं जिनमें तस्करी से लाई गई अत्याधुनिक पिस्तौलों और एके 47 से लेकर देश के विभिन्न भागों में स्थानीय स्तर पर बनाए जा रहे कट्टे आदि सम्मिलित हैं।

इन अवैध हथियारों का उपयोग आतंकी गतिविधियों, अवैध व्यवसायों, लूट, डकैती, हत्या, फिरौती, हफ्ता वसूली, डराने, धमकाने, बदला लेने व धाक जमाने के लिए किए जाने के समाचार अक्सर देखने-सुनने में आते हैं। स्थानीय स्तर पर सिकलीगिरो द्वारा देसी कट्टों के निर्माण क्षेत्रों के नाम भी समाचार पत्रों में आते रहते हैं। इन पर सक्षम तैयारी के साथ प्रभावी कारवाई न किए जाने से हथियार माफियाओं ने हाल ही में मध्यप्रदेश के धार जिले में एसटीएफ की टीम पर हमला कर सिपाहियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा और घायल सिपाही को बाइक से कुचल कर अधमरा कर दिया। यह एक खतरनाक संकेत है। समाज के लिए विनाशकारी इन हथियारों के निर्माण क्षेत्रों में प्रभावी कार्रवाई, तस्करी पर कठोर निगरानी और निगरानी तंत्र की जवाबदेही सुनिचित करके ही अवैध हथियारों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

लाइसेंसयुक्त हथियारों को वैध माना जाता है और कुछ प्रक्रियाओं व अहर्ताओं के आधार पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा लाइसेंस जारी किए जाते हैं। आत्मरक्षा आदि के नाम पर जारी इन हथियारों का उपयोग प्रतिष्ठा के प्रदर्शन के लिए भी किया जा रहा है। व्यक्तिगत, धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में इनके प्रदर्शन से एक ओर भय की स्थिति बन जाती है तो दूसरी ओर त्रुटिवश या त्वरित उत्तेजना में उपयोग हो जाने पर जनहानि की सूचनाएं भी मिलती रहती हैं। परिजनों या लाइसेंसी हथियारों से खुदकुशी के समाचार भी आते रहते हैं। मनोरोगी द्वारा पूरे परिवार के संहार के दृश्य भी कभी-कभार देखने में आए हैं। ऐसे में हथियारों के लाइसेंस की नीति पर भी पुनर्विचार की महती आवश्यकता है।
समाज को शस्त्रविहीन रख कर भयमुक्त बनाया जा सकता है और शांति, सद्भाव व प्रगति के मार्ग को प्रशस्त किया जा सकता है।
’सुरेश उपाध्याय, गीता नगर, इंदौर</p>