कई बार ईमानदार और योग्य उम्मीदवार नहीं होने की वजह से अनेक मतदाता मतदान में भाग नहीं लेते हैं। मतदाताओं की इस समस्या को दूर करने के लिए चुनाव आयोग ने ईवीएम में अंतिम विकल्प के तौर पर ‘नोटा’ (नन आॅफ द एबव, यानी इनमें से कोई नहीं) का बटन जोड़ा था। प्रत्येक चुनाव में ‘नोटा’ पर मतदान करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।

2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग 1.04 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा के लिए मतदान किया। हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव में कुल मतदान का 1.69 प्रतिशत मत नोटा में गया है। बार-बार राजनीतिक दलों से आग्रह के बावजूद जनता को कई बार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनना पड़ जाता है।

लोकसभा और विधानसभा में आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रतिनिधियों की एक लंबी फेहरिस्त है। अगर किसी क्षेत्र में नोटा को सर्वाधिक मत हासिल हो तो उस क्षेत्र का चुनाव रद्द घोषित कर देना चाहिए और नया चुनाव कराया जाना चाहिए। फिर नए चुनाव में उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए जो रद्द हुए चुनाव में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी थे। खारिज करने के अधिकार का प्रावधान लागू होने पर सभी राजनीतिक दल ईमानदार और योग्य उम्मीदवार को टिकट देने के लिए बाध्य होंगे।
’हिमांशु शेखर, गया, बिहार

विद्यार्थी का भविष्य

बीते मार्च से ही देश के सभी शिक्षण संस्थान बंद पड़े हैं, जिसका प्रतिकूल प्रभाव आगामी परीक्षाओं पर पड़ रहा है। इसी क्रम में मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा जारी आदेशानुसार दिसंबर महीने में संपन्न होने वाली मुख्य परीक्षा अगले वर्ष होगी। यह एक चिंता का विषय है।

अगर यूपीएससी और एनटीए राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षाओं का आयोजन कर सकती है, तो एक राज्य विशेष ऐसा क्यों नहीं कर सकता? विद्यार्थी बेरोजगारी, आर्थिक निर्धनता, इम्तिहान में होते विलंब से उत्पन्न मानसिक तनाव जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। इसलिए जिस तरह सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न कराने के लिए छूट दी गई थी, उसी तरह शिक्षण संस्थानों के समय पर खुलने और आगामी परीक्षाओं के आयोजित किए जाने की जरूरत है।
’तनिशा जैन, इंदौर, मप्र