भारतीय संस्कृति और सभ्यता हमारे जीवन का मूल आधार भी है। एक दौर था, जब लड़की के परिवार वाले अपनी सहमति और सूझबूझ से लड़की के लिए वर चुनते थे और लड़की बिना अपनी इच्छा जाहिर किए परिवार के बताए नक्शे-कदम पर चल पड़ती थी। इसके बाद कई शादियां निभा ली जाती थीं तो कहीं कुछ बिखर जाती थीं।

अपवादों को दरकिनार कर दें तो शायद पचास फीसद शादियां मजबूरी और जबर्दस्ती के रिश्तों में बदल चुकी होती हैं। बात अगर इतिहास या फिर धर्मग्रंथों की करें एक कृति ‘रामायण’ में भी यही सीख दी गई है कि वधू का अधिकार है कि वह अपने वर को अपनी इच्छा, योग्यता और अपनी भावनाओं को मद्देनजर रखकर चुन सकती है। जिस तरह राजा जनक ने अपनी पुत्रियों को स्वयंवर के जरिए उन्हें अपने जीवनसाथी का चयन करने का अवसर दिया था।

लेकिन बदलते परिदृश्य के साथ लोगों में भेदभाव जाति और धर्म के आधार पर हो गए। जीवन साथी का अर्थ ही होता है ऐसे व्यक्ति का चुनाव करना जो जीवन भर हर परिस्थिति में अपनी संगिनी का साथ दे। पिछले कुछ समय से ‘लव जिहाद’ की खबरें जोरों पर हैं। असल में यह शब्द ही गलत है। जबर्दस्ती केवल एक तरफ से या केवल एक धर्म में नहीं होती।

क्या प्रेम और शादी जैसे पवित्र रिश्ते धर्म, जाति, ऊंच-नीच के दायरे से ऊपर उठ कर नहीं जोड़े जा सकते? किस धर्म का ग्रंथ है, जिसमें यह लिखा है कि प्रेम या इश्क के लिए मजहब और धर्म उस पाक इरादे से बढ़ कर है। पहले से मौजूद भारतीय कानून की सख्ती से हर कोई वाकिफ है। कोई भी मजहब या समुदाय नफरत फैलाने, जोर-जबर्दस्ती करने या गलत करने की सीख नहीं देता।
’निशा कश्यप, हरीनगर आश्रम, नई दिल्ली</p>