हमारी व्यवस्था को लेकर हम कई बार अचरज में पड़ जाते हैं। हम यह सोच कर परेशान हैं कि क्या हम ऐसी व्यवस्था के आदी हो चुके हैं। हाल ही में बिलकिस बानो मामले में सबने देखा कि किस तरीके से सजा काट रहे ग्यारह लोगों को रिहाई दे दी गई। यहां हम तत्त्वों की गहराई में नहीं जा रहे हैं।
सवाल यह उठता है कि अगर वे लोग दोषी हैं तो फिर रिहाई कैसी। हम इससे समाज में क्या संदेश देना चाहते हैं, जब आज लगातार हमारा समाज महिला सुरक्षा को लेकर जूझ रहा है, संघर्ष कर रहा है। फिर इस तरह की घटनाएं हमारा मनोबल कमजोर करते हैं। लोकतंत्र के प्रति भरोसा कम करती हैं। इसलिए जरूरी है कि विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका मिलकर सभी ऐसे कानून की कमजोरियों का और ऐसी व्यवस्था का मूल्यांकन करें, ताकि किसी के साथ भी अन्याय न हो।
सौरव बुंदेला, भोपाल, मप्र
सेहत की खातिर
अतीत में लोग आमतौर पर स्वस्थ हुआ करते थे। घर में अपने परिवार के साथ ताजा और पौष्टिक भोजन किया करते थे। आज सब बदल गया है। अनेक लोग विशेषकर बच्चे फास्ट फूड पसंद करते हैं, जैसे बर्गर, पित्जा, चिप्स आदि। दरअसल, आजकल अभिभावक अधिक समय तक काम करते हैं और उनके पास भोजन बनाने के लिए समय कम होता है।
फिर विज्ञापन, टीवी, पत्रिका और इंटरनेट से अनेक प्रकार के उपलब्ध भोजन की लोगों में जानकारी बढ़ गई है। फास्ट फूड स्वादिष्ट और सुविधाजनक होता है, मगर स्वास्थ्य कर नहीं होता। बहुत से बच्चे मोटापे और अनेक रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं। अत्याधिक वसायुक्त और तैलीय पदार्थ एवं स्वादिष्ट बनाने के लिए तरह-तरह के रसायन आधारित पदार्थ को मिलाकर बाजार में अपनी अत्याधिक कमाई के लिए उसे आकर्षक बना कर बाजार में उतारते हैं।
इससे लोगों को बचने और इसे समझने की जरूरत है कि यह हमारे सेहत के लिए अच्छा नहीं है। मोटापे के जरिए बीमारी का आगमन होता है, पर इसके ज्यादा सेवन से शरीर के अंदर तरह-तरह की बीमारियां उत्पन्न होती हैं। जैसे कैंसर, रक्तचाप आदि घातक बीमारियां। इसके लिए नामी हस्तियां विज्ञापन और टीवी के माध्यम से ऐसे उत्पादों का प्रचार करती हैं। जनहित की रक्षा के लिए ऐसे कंपनियों का प्रचार पर रोक लगाने की जरूरत है। साथ ही एक कठोर दंडात्मक कार्रवाई करने की जरूरत है, क्योंकि किसी के जीवन से खिलवाड़ करना उचित नहीं है।
तारामुनी देवी, लालगंज, वैशाली