पारदर्शिता एवं सुशासन का दावा हर सरकार करती है। मगर उस दावे को हकीकत में बदल कर दिखाना किसी के बस में नहीं होता। राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण विपक्ष के लोग सत्ता पक्ष पर और सत्ता पक्ष के लोग विपक्ष पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं। मगर जो सत्ता में बैठा है, उसके जिम्मे यह बात है कि सिर्फ आरोपों का खंडन न करे, बल्कि यह साबित भी करे कि सभी आरोप मनगढ़ंत हैं। वर्तमान केंद्र सरकार के लिए राफेल खरीद का मामला तूल पकड़ चुका है। दो अंग्रेजी दैनिकों में छपे लेख और दस्तावेजों से आए दिन सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं। पहले इस सौदे में पीएमओ के दखल का सबूत पेश किया गया, फिर भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधान को इस सौदे से हटवाया गया। इसके बाद ईमेल के माध्यम से यह रहस्योद्घाटन हुआ कि एक व्यापारी घराने के शीर्ष व्यक्ति का सौदे के करार पर हस्ताक्षर के कुछ दिन पहले फ्रांस में था। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद ने भी कह दिया की उस घराने का नाम भारत सरकार ने हमें दिया। आखिर यह सब क्या है? क्या यही भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना है?
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर

कैग का बैग भी खाली: रफाल मुद्दे पर कोर्ट गए, संसद तक नहीं चलने दी, देश में सबूत जुटाए, विदेश से सबूत लाए। सब तरफ से हार कर ‘कैग’ को मामला सौंपा। और अंत में कैग का बैग भी खाली निकला। अब जांच के लिए एक ही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) बची है। कैग ने यूपीए से भी 2.86 फीसद कम कीमत में रफाल खरीदने की बात कही है, कोर्ट ने सौदे को सही ठहराया है, संसद में लगातार बहस के दौरान भी कोई सबूत नहीं मिला। ऐसे में तो जनता का फैसला ही सबसे बड़ा होगा।
शकुंतला महेश नेनावा, इंदौर</strong>

वोटों का गणित और बजट: अप्रैल-मई में होने वाले आम चुनाव से पहले सरकार ने अंतरिम बजट में वोट के गणित का बड़ी बारीकी से ध्यान रखा है; किसानों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और नौकरीपेशा मध्यम वर्ग को चुनावी झुनझुना थमा कर रिझाने का भरपूर प्रयास किया गया है। किसानों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और नौकरीपेशा मध्यम वर्ग के लिए बजट में करीब सवा लाख करोड़ का प्रावधान किया गया है। उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र के तीन करोड़ से ज्यादा किसानों को छह हजार रुपए दिए जाने की घोषणा को सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। बजट में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए तीन हजार रुपए मासिक पेंशन का प्रावधान किया गया है। मजदूरों एवं किसानों के प्रति सरकार की मेहरबानी सरकार के डर को बयां करती है। सरकार इस हकीकत से अनजान नहीं है कि मजदूरों और किसानों को नजरअदांज करके ज्यादा दिन तक सत्ता में बने रह पाना मुश्किल होगा। अर्थशास्त्रियों की मानें तो इन घोषणाओं से राजकोषीय गणित बिगड़ेगा। सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट को अगर तुष्टिकरण का बजट कहा जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
कुंदन कुमार, बीएचयू, वाराणसी

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