भारत में कुपोषण से निपटने और खाद्य सुरक्षा को लेकर विभिन्न योजनाएं चलाई गर्इं लेकिन समस्या की विकरालता को देखते हुए वे नाकाफी तो थीं ही, प्रक्रियात्मक विसंगतियों और भ्रष्टाचार की वजह से तकरीबन बेअसर भी साबित हुई हैं। दरअसल, भूख से बचाव यानी खाद्य सुरक्षा के तहत सभी नागरिकों को जरूरी पोषक तत्त्वों से परिपूर्ण भोजन उनकी जरूरत के हिसाब से समय पर और गरिमामय तरीके से उपलब्ध करना किसी भी सरकार का पहला दायित्व है। लेकिन हमारे देश में भूख और कुपोषण की समस्या आज भी विकराल बनी हुई है। सरकार ने अपने स्तर पर प्रयास तो बहुत किए है लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। कुपोषण के कारण विकलांग बच्चे दिखने को मिलते हैं। सरकार को कुपोषण दूर करने के लिए तत्काल प्रभावी उपाय करने चाहिए।
मोहम्मद आसिफ, दिल्ली विश्वविद्यालय
अकेलेपन की कैद: हमारे देश में अकेलेपन से होने वाला तनाव दिन-ब-दिन तेजी से बढ़ रहा है। सभी को परिवार के साथ रहना पसंद है लेकिन आज युवक अपने करीयर के चक्कर में किसी को साथी बनाने से बचते दिख रहे हैं। अकेलेपन से पीड़ित लोगों में पुरुषों से ज्यादा संख्या महिलाओं की देखी जा रही है और यही आगे भविष्य में उनके अकेलेपन का कारण बनता जा रहा है। ऐसे में व्यक्ति कामयाबी और अपना लक्ष्य तो हासिल कर लेता है, लेकिन उम्र भर बिना किसी साथी के ही रह जाता है। नेशनल सैंपल सर्वे के 2004 के आकड़ों के मुताबिक देश में 12.3 लाख युवक और 36.8 लाख महिलाएं अकेलेपन की शिकार थीं। यह आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि ब्रिटेन में तो पिछले साल अकेलापन मंत्रालय बनाने की जरूरत आ पड़ी थी। व्यक्ति के लिए जितना जरूरी कामयाबी और लक्ष्य पाना है उससे कहीं ज्यादा जरूरी एक आत्मीय साथी का जीवन में होना है। अकेलेपन की बीमारी से ग्रस्त रोगी मानसिक तनाव के शिकार बन जाते हैं। इस कारण उन्हें छोटी-छोटी परेशानियां भी बहुत बड़ी लगने लगती हैं। वे जल्द ही गुस्सा करने लगते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि अपने करीयर के साथ-साथ जीवन साथी का भी सही समय पर चुनाव किया जाए ताकि भविष्य में उन्हें अकेलेपन की गंभीर बीमारी का सामना न करना पड़े।
निशांत रावत, आंबेडकर कॉलेज, दिल्ली</strong>
समय पर साइकिल: बिहार में मुख्यमंत्री साइकिल योजना के तहत छात्र-छात्राओं को दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि योजना में काफी तब्दीली करने की जरूरत है। साइकिल की व्यवस्था सैद्धांतिक तौर पर इसलिए की जाती है कि बच्चे मैट्रिक तक आसानी से शिक्षा हासिल कर सकें। लेकिन व्यावहारिक रूप में होता यह है कि साइकिल मिलते-मिलते बच्चा नौवीं क्लास पास कर जाता है जिससे उसे योजना का अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। इसलिए जब बच्चे आठवीं कक्षा में पास हों उसी समय साइकिल योजना के लिए उन्हें राशि मुहैया कराई जाए। इससे छात्र-छात्राओं की पढ़ाई नहीं छूटेगी। सरकारी व्यवस्था पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि राशि को सरकार देती ही है।
मिथिलेश कुमार, भागलपुर
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