कांग्रेस ने एक बड़ा दांव चला है। उसने प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए महासचिव बनाया है जिसे भारतीय जनता पार्टी का गढ़ कहा जा रहा है। आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने तुरुप का इक्का चला है। असल में यह लोकसभा चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए करो या मरो का चुनाव बन गया है, इसलिए वह अपनी तैयारी में किसी प्रकार की कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहती है। यही वजह है कि लंबे इंतजार के बाद राहुल गांधी की बहन प्रियंका वाड्रा सक्रिय राजनीति में उतरने जा रही हैं। प्रियंका गांधी का सक्रिय राजनीति में आना और उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान दिया जाना कांग्रेस का एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। उनकी सक्रिय राजनीति में एंट्री ऐसे समय हुई है जब तीन राज्यों के हालिया विधानसभा चुनाव के परिणाम ने कांग्रेस में नई ऊर्जा का संचार किया है। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस को महागठबंधन में जगह नहीं दी है, लिहाजा कांग्रेस के लिए यह समय पार्टी में नई जान फूंकने के लिए महत्त्वपूर्ण है और उसने किया भी ऐसा ही है। हालांकि तुरुप का यह इक्का चुनाव के खेल को अपने पक्ष में कर पाता है या नहीं यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन एक बात जो कांग्रेस ने फिर से साबित कर दी है वह यह कि उसने हमेशा परिवारवाद को बढ़ावा दिया है और मौजूदा स्थिति भी इससे अलग नहीं है।
प्रियंका को महासचिव बनाए जाने से कार्यकताओं पर प्रभावी सकारात्मक असर जरूर पड़ेगा और वे ज्यादा ऊर्जा के साथ अपने काम को अंजाम देंगे। लेकिन बेहतर होता अगर कांग्रेस इस बात का भी आकलन कर लेती कि उसके इस मास्टर स्ट्रोक का आम जनता पर क्या असर पड़ेगा। उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जो हालत थी उसे पार्टी 2019 में कितना बेहतर कर पाती है यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन ऐसे मास्टर स्ट्रोक की जगह अगर वह आम जनता से जुड़ने की कोई खास रणनीति बना पाती तो संभवत: यह उसके लिए ज्यादा हितकारी साबित होता क्योंकि जनता को चाहिए कि सत्ता में वही पार्टी आए जो जनता के बीच आकर उसकी समस्याएं सुने व उनका निवारण करे।
जनता चाहती है कि नेता उसकी बात को समझें और उसके लिए सियासत करें न कि उनसे सियासत करें। आगामी लोकसभा चुनाव में चाहे कोई भी पार्टी जीते व किसी भी पार्टी का प्रतिनिधि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो लेकिन उस पार्टी को यह बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए कि उसकी सरकार जनता की वजह से है व जनता के लिए है। सबसे पहले उसे जनता के हित में सोचना चाहिए।
अमन सिंह, प्रेम नगर, बरेली
बढ़ती खाई: आक्सफैम की रपट के मुताबिक भारत के शीर्ष नौ अमीरों के पास देश की पचास प्रतिशत संपत्ति है वहीं पचास प्रतिशत गरीबों की संपत्ति में केवल तीन प्रतिशत वृद्धि हुई है। यह बेहद दुखद है। हमारे देश में चंद लोगों के हाथ में मुल्क की आधी संपत्ति है शायद यही हमारे पिछड़ेपन का कारण है क्योंकि इससे गरीब-अमीर के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। देश में कुछ लोग अत्यंत साधन-संपन्न हैं जबकि बाकी लोग बुनियादी आवश्यकताओं के लिए भी तरस रहे हैं। यह सब हुआ है पूंजीवाद के कारण जिसमें अमीर और अमीर बनता जाता है और गरीब और गरीब। देश में आय का वितरण समान होना चाहिए।
चांद मोहम्मद, दिल्ली विश्वविद्यालय
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