दिल्ली की हवा जहरीली होने की खबरें रोजाना आ रही है। हकीकत तो यह है कि सिर्फ दिल्ली ही नहीं, भारत के ज्यादातर शहरों की हालत ऐसी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े और रिपोर्टें भी चौकाने वाले तथ्य पेश कर चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के चार हजार तीन सौ से अधिक शहरों की वायु गुणवत्ता का अध्ययन किया गया जिसके परिणाम भारत के संदर्भ में एक चिंताजनक परिस्थति को बयान करते हैं। रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के सबसे पंद्रह प्रदूषित शहरों में भारत के चौदह शहर शामिल हैं। बहरहाल सरकार वायु प्रदूषण से निपटने के लिए जो कदम उठा रही है, वे कामयाब होते नजर नहीं आ रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वे वह ऐसे सख्त कदम उठाए जो दुनिया के दूसरे देशो ने उठाए हैं।

हमें अपने पड़ोसी देश चीन से सीखना चाहिए। वर्ष 2013 में चीन के हालात इतने बुरे थे कि तुरंत कुछ करने की जरूरत थी। चीन ने इसके लिए चेतावनी जारी की और कड़े कदम उठाए। चीन में रेड अलर्ट होने पर आॅड-ईवन लागू किया जाता है, सार्वजनिक परिवहन की संख्या बढ़ा दी जाती है। सर्दियों में ऐसे उद्योगों को बंद कर दिया जाता है, जिनसे प्रदूषण फैलता है। बेजिंग में स्मॉग पुलिस भी तैनात की गई है जो खासतौर पर प्रदूषण पर निगरानी करते हैं। इसके अलावा कई और भी प्रतिबंध लगाए गए, जैसे चीन ने वर्ष 2011 में ही कारों बिक्री को सीमित कर दिया था और अनेक हरित पार्क बनाए। इन सभी नीतियों पर ठोस तरीके से अमल करते हुए चीन ने वायु प्रदूषण से निपटने में एक सीमा तक तो कामयाबी हासिल की।

भारत को भी अपनी कुशलता का परिचय देते हुए ठोस नीतियां बनानी होंगी जो वायु गुणवत्ता में सुधार कर सकें। सड़कों पर जितने वाहन होंगे प्रदूषण उतना ही चरम पर होगा। आॅड-ईवन दिल्ली में वाहनों की संख्या कम करने का ही प्रयोग था, लिहाज सबसे पहले वाहनों की संख्या को कम करने की जरूरत है, साथ ही बिजली चलित वाहनों के निर्माण पर बल देना होगा। इन सब कामों के लिए राजनीतिक दलों को आगे आना होगा ताकि सरकार किसी भी दल की हो, इस पर बेहतर नीतियां बना सके।
योगेश मिश्रा, राजस्थान विवि, जयपुर</strong>

दौलत की भूख: कबीर का एक दोहा है-‘सार्इं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय-मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥’ लेकिन आज कुछ लोग इस दोहे पर अमल करना भूल गए हैं। माना की जरूरतों को पूरा करने के लिए धन-दौलत जरूरी है, लेकिन ज्यादा धन-दौलत कमाने के चक्कर में इंसानियतता से गिरना सरासर गलत है। आज लोगों ने दिखावे के लिए अपनी जरूरत बहुत बढ़ा ली हैं, इस कारण भी धन-दौलत की भूख बढ़ती जा रही है। पैसे के लालच ने ही तो देश में भ्रष्टाचार की लाइलाज बीमारी को जन्म दिया है। चंद सिक्कों के खातिर तो आज कुछ लोग अपना दीन-धर्म, ईमान तक बेच रहे हैं, इससे समाज में अनैतिकता बढ़ती जा रही है। आज धन-दौलत का लालच रिश्तों में दरार डाल रहा है, यहां तक कि पैसे के खातिर लोग अपनों की जान के दुश्मन बन भी बन रहे हैं। लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि बेईमानी का अंत बुरा ही होता है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर

जानलेवा पुल: दिल्ली में स्थित सिग्नेचर ब्रिज यों तो चौदह साल के इंतजारके बाद बन कर तैयार हुआ। लेकिन साथ ही इस ब्रिज की कमियां भी उभर के सामने आने लगी हैं। ब्रिज के दोनों ओर की सड़कों के बीच जो डिवाइडर है, वह न होने के बराबर है। इसके अलावा ब्रिज पर जानलेवा हादसे भी हो चुके हैं। लोग ब्रिज पर सेल्फी लेते नजर आ रहे हैं। इस पुल के उद्घाटन के वक्त सभी राजनीतिक पार्टियों ने इसके निर्माण में अपना-अपना योगदान बताया था, तो उन्हें अब इसकी खामियों के सुधार पर भी ध्यान देना चाहिए। अभी भी यह टावर पूरी तरह से बन कर तैयार नहीं हुआ है। सरकार को चाहिए कि वह सिग्नेचर ब्रिज का काम पूरा कराए और इसकी खामियों को जल्द दुरुस्त करे ताकि यह जानलेवा साबित न हो।
निशांत रावत, आंबेडकर कालेज, दिल्ली

जी-20 में कामयाबी: अर्जेंटीना में हुआ तेहरवां जी-20 शिखर सम्मेलन भारत के लिए बड़ी कामयाबी है। आजादी के पिचहत्तर साल पूरे होने के मौके पर 2022 में जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी का भारत को मौका मिलेगा। जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन की मेजबानी मिलना दुनिया में भारत की बढ़ती ताकत को इंगित करता है। शिखर बैठक में भारत ने आतंकवाद के खिलाफ ग्यारह सूत्रीय एजेंडा लागू करने की आवश्यकता पर जोर देकर और भगोड़े आर्थिक अपराधियों की समस्या से निपटने के लिए नौ सूत्रीय कार्य योजना के महत्त्व की ओर ध्यान दिला कर एक सराहनीय कार्य किया है।
मुकेश शेषमा, झुंझुनू

एड्स और जागरूकता: एक दिसंबर को विश्वभर में एड्स दिवस के रूप में मनाया गया और जागरूकता अभियान भी चलाया गया। लेकिन विडंबना यह है कि एड्स से बचाव के सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर कार्यक्रमों में तेजी के बाद भी बचाव की दर सिर्फ 0.34 फीसद ही है, जो एक निराशाजनक आंकड़ा है। बेहतर होगा कि संयुक्त राष्ट्र, सरकारें और स्वयंसेवी संस्थाएं एड्स से बचाव के लिए जागरूकता अभियान जारी रखें। आज भी एड्स के बारे में लोगों को पर्याप्त जानकारी नहीं हैं और इसी का नतीजा है कि 1981 में एड्स के बारे में पता चलने के बाद से अब तक लगभग तीस करोड़ लोगों की जान जा चुकी है। एड्स को पूरी तरह से तभी खत्म किया जा सकता हैं, जब प्रत्येक व्यक्ति इसके प्रति जागरूक और सतर्क होगा।
विशेक, दिल्ली विवि

मुफ्तखोरी की लत: मद्रास हाई कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है कि मुफ्त की सरकारी योजनाओं ने लोगों को आलसी बना दिया है। चुनाव आने से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने घोषणापत्रों में मुफ्त की योजनाओं का एलान करती हैं और लोगों को सपने दिखाती हैं। इस तरह की योजनाएं चला कर लोगों को एक श्रेष्ठ कामगार के रूप में विकसित करने के बजाय उन्हें पंगु बनाया जा रहा है। यह मानव के साथ एक प्रकार का द्रोह ही कहा जाएगा।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन

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