जब आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नाडयू सरकार और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने सीबीआइ के लिए अपने राज्य में ‘नो इंट्री’ यानी प्रवेश निषेध का ऐलान किया तो यह डर जताया जा रहा था कि ऐसे में केंद्रीय एजेंसियों का काम कर पाना मुश्किल हो जाएगा। यह डर कोलकाता में तब सही साबित हुआ जब सारदा चिटफंड घोटाले की फाइलें जब्त करने कोलकाता पुलिस आयुक्त के घर पहुंची सीबीआइ टीम और स्थानीय पुलिस के बीच टकराव हो गया। हद तो तब हो गई जब सीबीआइ की टीम को कोलकाता पुलिस ने हिरासत में ले लिया। बंगाल पुलिस द्वारा सीबीआइ की टीम को गिरफ्तार किए जाने के बाद यह राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बन गया।

संविधान के जानकार इसे बंगाल पुलिस और सीबीआइ विवाद के इतर केंद्र-राज्य विवाद के रूप में देखने लगे। हालांकि ममता बनर्जी के धरने पर बैठने के बाद इसे केंद्र-राज्य विवाद के रूप में देखना कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। हाल के घटनाक्रम से पता चलता है कि केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार, देश के संवैधानिक एवं सरकारी निकायों के दुरुपयोग के आरोप दोनों पर लग रहे हैं। यही कारण है कि आम जनमानस में देश के संवैधानिक और सरकारी निकायों के प्रति अविश्वास बढ़ता जा रहा है। निहित सियासी स्वार्थों से ऊपर उठ कर आम जनमानस में इस विश्वास को फिर से कायम करना आज बहुत जरूरी है।
कुंदन कुमार ‘क्रांति’, वाराणसी

हादसों की वजह: राजधानी दिल्ली में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या 6.5 फीसद बढ़ गई है जो चिंताजनक है। देश में वाहनों का जाल फैलता ही जा रहा है। सड़क हादसों में मरने वालों में सबसे ज्यादा साइकिल सवार और पैदल चलने वाले हैं। ज्यादातर हादसे रात नौ से तीन बजे तक होते हैं। यातायात संबंधी नियम-कानून होने के बावजूद तेज गति से या शराब पीकर वाहन चलाना, हेलमेट न पहनना आम है। आज भी सड़कों पर स्कूली बच्चे बाइक भगाते देखे जा सकते हैं। इसे उनकी जिद कहें या परिजनों की लापरवाही! हमारी सड़कें पैदल चलने वालों की लिए महफूज नहीं हैं। पुलिस और सरकार को सख्ती से यातायात नियमों को लागू करना होगा तभी स्थिति में सुधार हो सकता है।
आशीष, राम लाल आनंद कॉलेज, दिल्ली

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