एक अमेरिकी कथित साइबर विशेषज्ञ ने दावा किया है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को ‘हैक’ किया जा सकता है। उसके मुताबिक 2014 के आम चुनावों में भी ईवीएम को हैक किया गया था। इस व्यक्ति के दावे के बाद देश की कुछ विपक्षी पार्टियों ने ईवीएम को लेकर हो-हल्ला मचाना शुरू कर दिया है। विडंबना देखिए कि इन दलों के नेता इतने शिक्षित होने के बावजूद एक व्यक्तिकी अपुष्ट बातों में फंस रहे हैं जबकि देश की संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग पर इन्हें विश्वास नहीं हो रहा है। भारतीय चुनाव आयोग ने साफ तौर पर कह दिया है कि ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं है। आयोग इसकी सत्यता और ‘फूल प्रूफ’ होने के दावे पर मजबूती से खड़ा है। आयोग ने दो साल पहले इसकी विश्वसनीयता पर उठे सवालों के जवाब में कहा था कि जिन पार्टियों को ईवीएम पर भरोसा नहीं है वे इसे हैक करके दिखाएं। लेकिन किसी भी पार्टी ने इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया। इसके पहले कई पूर्व चुनाव आयुक्तों द्वारा स्पष्ट किया जा चुका है कि ईवीएम में किसी भी प्रकार से गड़बड़ी नहीं की जा सकती है।
इसी संदेह की वजह से ईवीएम को और अधिक आधुनिक बनाया गया जिसमें ‘वोटर वेरीफाइड पेपर ट्रेल मशीन’ का प्रयोग किया जाता है। इसमें मतदाता अपने द्वारा चिह्नित चुनाव निशान को वोटर वेरीफाइड पेपर ट्रेल मशीन पर देख सकता है। इतना कुछ स्पष्ट होने के बावजूद इसे संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। चुनाव आयोग अपने कार्य में इतना दक्ष है कि वह विभिन्न देशों के व्यक्तियों को चुनाव प्रक्रिया के बारे में प्रशिक्षण देता है। उदाहरण के तौर पर नेपाल, भूटान और अफगानिस्तान आदि का नाम लिया जा सकता है। अफगानिस्तान में तो 2004 में उसने चुनाव भी करवाए थे। जिन देशों में चुनाव संपन्न हुए हैं उनमें ईवीएम का ही प्रयोग हुआ है।
सवाल है कि यदि हमारा चुनाव आयोग इतना गलत होता तो क्या विभिन्न देश उससे चुनाव कार्य संपन्न करवाते? वास्तव में असल मुद्दा ईवीएम नहीं, चुनाव है। आम चुनाव को करीब देख कर कुछ पार्टियां देश के मतदाताओं को भ्रमित करके सहानुभूति लेना चाह रही हैं ताकि कुछ प्रतिशत मतदाताओं को अपने पक्ष में किया जा सके।
दुर्गेश शर्मा, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश</strong>
खतरे की घंटी: आज हम जैसे-जैसे विकसित होते जा रहे हैं प्राकृतिक संसाधनों का उतना ही दुरुपयोग कर रहे हैं। इसी का नतीजा है जलवायु परिवर्तन, बेमौसम बरसात, सूखा, तापमान में बढ़ोतरी आदि। यह आने वाले समय के लिए खतरे की घंटी है। रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर ज्यादा से ज्यादा मुनाफे के लोभ ने ऐसी अनेक बीमारियों को जन्म दिया है, जिनका इलाज ही मुश्किल है। आज मनुष्य अगर समय रहते पर्यावरण की कद्र नहीं करता है तो उसका नतीजा भावी पीढ़ियों को जरूर भुगतना पड़ेगा। इसके मद्देनजर प्रकृति से खिलवाड़ के बजाय उसके साथ सामंजस्यपूर्ण जीवनशैली अपनाने की जरूरत है।
श्रीनिवास बिश्नोई, दिल्ली</strong>
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