दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में एक साल में बारह हजार सात सौ अड़तालीस नए कमरे बनाए जाएंगे। जहां एक ओर वोट बैंक की राजनीति के चलते मंदिर-मस्जिद, हिंदू बनाम मुसलिम की खबरें आम रहती हैं वहीं शिक्षा सुधार पर ऐसी खबरें यदा-कदा ही नजर में आती हैं और एक बेहतर और विकसित समाज की आशा भी जगाती हैं। इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर काम कर रही है। बजट में लगभग छब्बीस प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च किया जा रहा है जो पूरे देश में सर्वाधिक है। मूलभूत सुविधाओं के अलावा शिक्षकों को बेहतर प्रशिक्षण देकर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार को भी महत्त्व दिया जा रहा है। अभिभावकों को प्रबंध समितियों और बैठकों के जरिए सीधा स्कूलों से जोड़ने की जो मुहिम दिल्ली सरकार ने चलाई है उससे स्कूल प्रबंधन पर हमेशा श्रेष्ठ करने का दबाव रहता है जिससे छात्रों की शिक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित रहती है। लोग अब अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने से गुरेज नहीं करते, यह एक बड़ी उपलब्धि है। निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाकर दिल्ली सरकार ने शिक्षा को सुलभ बनाने का प्रयास किया है।
लेकिन अब भी दिल्ली की सरकारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार की बहुत गुंजाइश है। निगम द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में भी ऐसे सुधार होने चाहिए। जब तक शुरुआती स्तर पर ही सुधार नहीं होंगे तब तक उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिलेंगे। बुनियादी शिक्षा को बेहतर बना कर ही हम भविष्य में प्रतिस्पर्धा में बने रह सकते हैं। दिल्ली सरकार को चाहिए कि निगम के विद्यालयों में भी शिक्षा सुधार के लिए कदम उठाए और हस्तक्षेप करे जिससे वहां भी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जा सकें और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारी जा सके।
दूसरे राज्य भी अब दिल्ली सरकार द्वारा किए जा रहे शिक्षा सुधारों से प्रभावित होकर कदम उठा रहे हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि अब शिक्षा पर सरकारें बात करने लगी हैं अन्यथा शिक्षा सुधार बस कागजों में सिमट कर रह गया था जिससे हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर रहे थे जहां बेहतर शिक्षा बस अमीरों के बस की बात थी। शिक्षित और स्वस्थ समाज अपना विकास स्वयं कर लेता है। राजनीतिक दलों और सरकारों को चाहिए कि वोटबैंक और तुष्टीकरण की राजनीति से ऊपर उठ कर नागरिकों को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने पर ध्यान दें।
अश्वनी राघव ‘रामेंदू’, उत्तमनगर, दिल्ली
भ्रष्टाचार घटा: भ्रष्टाचार पर निगाह रखने वाले संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने 2018 के लिए अपना वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक जारी कर दिया है। भारत इसमें 100 में से 41 अंक प्राप्त कर 78वें स्थान पर है। जब केंद्र में राजग ने सत्ता संभाली थी तो भारत 34 अंकों के साथ 95वें स्थान पर था। यानी पिछले साढ़े चार साल में देश में भ्रष्टाचार कम हुआ है। इसके बावजूद कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष भ्रष्टाचार के कपोल-कल्पित आरोप ऊंची आवाज के साथ लगाकर लोगों की धारणा बदलने की पुरजोर कोशिश करता रहा है। यदि यह झूठा प्रचार न किया जाता तो भारत के अंक और रैंक और अच्छे हो सकते थे।
अजय मित्तल, मेरठ
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