भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र का आशय स्पष्ट है- जनता का राज। हमारे देश में चुनाव के माध्यम से भले ही जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है, लेकिन राजनेता जनप्रतिनिधि बनने के बाद आम जनता से दूर हो जाते हैं। इतना ही नहीं, आम जनता से उनकी मुलाकात भी आसान नहीं रह जाती। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वास्तव में नेता चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि की भूमिका का सही तरीके से पालन करते हुए दिखाई देते हैं। यकीनन इसका उत्तर ‘ना’ में ही होगा, क्योंकि जनप्रतिनिधि महज कुछ चाटुकारों के प्रतिनिधि बन कर ही रह जाते हैं। इसलिए सवाल उठता है कि देश में फिर कैसा लोकतंत्र है? क्या जनप्रतिनिधियों का जनता से दूर होना लोकतंत्र का परिचायक माना जा सकता है? लगता है कि देश में लोकतंत्र के मायने बदलते जा रहे हैं।

वर्तमान राजनीतिक वातावरण में जिस स्वार्थी राजनीति का चलन बढ़ रहा है, उसमें दिख रहा है कि राजनेता अपने हर कार्य को या तो सही सिद्ध करने का प्रयास करता है या फिर वह सीधे तौर पर सरकार पर बदले की कार्रवाई का आरोप लगा देता है। ऐसे में स्वच्छ और स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना कैसे कर सकते हैं? लोकतांत्रिक जीवन मूल्यों को बचाए रखने के लिए वर्तमान में रचनात्मक विपक्ष का होना समय की मांग है। लेकिन हमारे देश में विपक्ष की रचनात्मकता समाप्त होती जा रही है। कहीं न कहीं अपने दोषों को छिपाने के लिए सरकार पर आरोप लगाना तो जैसे विपक्ष का स्वभाव ही बन गया है। हालांकि लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए विपक्ष का होना अत्यंत जरूरी कहा गया है, लेकिन विपक्ष अपनी भूमिका का सही रुप से प्रतिपादन नहीं करे तो विपक्ष की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाना स्वाभाविक है। इस वास्तविकता को भले ही देश की जनता स्वीकार करने लगी हो, लेकिन विपक्ष इस सच्चाई से दूर भागता हुआ दिखाई दे रहा है।
मुकेश शेषमा, झुंझुनूं (राजस्थान)

सरकार के स्कूल: सरकारी स्कूलों को लेकर लोगों की सोच कितनी बदल चुकी है, इसका पता इस बात से चलता है कि सरकारी नौकरी तो सब करना चाहते हैं, पर सरकारी स्कूल में कोई खुद पढ़ना या अपने बच्चे को पढ़ाना नहीं चाहता। लोगों को सरकारी मकान चाहिए, पर सरकारी स्कूल नहीं। आखिर इसके पीछे जो कारण हैं, उससे हम सब परिचित हैं। सबसे बड़ा कारण सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर गिरना है। इनमें पढ़ने वाले बारहवीं कक्षा के बच्चों की हालत प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले आठवीं के बच्चों से भी बदतर है। किसी देश के विकास का पैमाना उस देश की साक्षरता दर से भी तय होता है। सरकारी स्कूलों की खराब हालत के कारण साक्षरता दर बढ़ नहीं पा रही। ऐसे में देश कैसे विकास करेगा? परंतु क्या किसी समस्या का यही हल है कि हम उससे आंखें मूंद लें? सबसे बड़ी जरूरत सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने की है और यह तभी होगा जब शिक्षकों की गुणवत्ता और स्कूलों की सुविधाओं पर ध्यान दिया जाएगा।
निखिल कुमार झा, दिल्ली विवि

धूम्रपान पर पूर्ण रोक: मौजूदा समय में युवाओं में धूम्रपान का शौक तेजी से बढ़ रहा है। धूम्रपान से होने वाले नुकसानों के विषय में सबसे पहले चिंतन 1930 से शुरू हुआ था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार धूम्रपान की वजह से दुनिया में हर साल साठ लाख से ज्यादा लोग मारे जाते हैं। दुनिया के करीब 125 देशों में तंबाकू का उत्पादन होता है और हर साल करीब छह खरब सिगरेटों का उत्पादन होता है। मोटे अनुमान के मुताबिक एक अरब से ज्यादा लोग इसका सेवन करते हैं। भारत तंबाकू निर्यात करने वाले देशों में दुनिया में छठे स्थान पर है। हर साल लगभग आठ हजार बच्चों की मौत अभीभावकों द्वारा किए जाने वाले धूम्रपान के कारण होती है। किसी भी तरह का धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर व जानलेवा बीमारियों का बड़ा कारण बनता है। लेकिन इतना सब कुछ पता होने के बावजूद भारत में तंबाकू, गुटखा, सिगरेट की खपत तेजी से बढ़ रही है और सरकारें इस पर पाबंदी लगाने में नाकाम साबित हुई हैं।
सौरभ शुक्ला, डीएसजे, दिल्ली विवि

नशे में खोई युवा पीढ़ी: आजकल स्कूल-कॉलेजों और छोटी-बड़ी पार्टियों में सिगरेट, शराब और बीयर का सेवन आम हो गया है! छोटे- छोटे बच्चों को भी सड़क किनारे या किसी कोने में नशा करते हुए देख सकते हैं। समस्या यह है आज नौजवानों की सोच बदल गई है। युवा आधुनिक समय में नशे को अपना फैशन समझने लगे हैं। यही कारण है कि समाज में नशा बड़ी बुराई और समस्या के रूप में सामने है। इसे बढ़ावा देने में अभिनेता एवं अभिनेत्रियों का बहुत बड़ा नकारात्मक योगदान है, कभी कोई अभिनेता एक मिनट में छह सिगरेट पीता है तो कभी दूसरा सात और फ्रि ऐसे दृश्यों को देख कर ही बच्चे ऐसा करने को प्रेरित होते हैं। यदि इस समस्या पर अतिशीघ्र कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो शरीर की भांति यह जहर राष्ट्र को भी खोखला कर देगा।
सौरभ कांत, दिल्ली

राजनीति में युवा: पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि भ्रष्टाचार मुक्त और सशक्त देश के निर्माण के लिए नौजवानों को आगे आना चाहिए। यदि युवा राजनीति में शामिल होंगे तो राजनीति में भी गतिशीलता आएगी। इस बात में कोई शक नहीं कि राष्ट्र और समाज को नई दिशा की ओर ले जाने के लिए युवाओं की सोच अहम भूमिका निभाती है। लेकिन यह तभी संभव है जब युवाओं कि सोच अपने राष्ट्र और समाज के प्रति अनुकूल हो। भारतीय समाज और राजनीति में फैली गंदगी सिर्फ युवा ही साफ कर सकते हैं।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर

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