देश के विकास को रफ्तार देने के लिए चौड़े-चौड़े एक्सप्रेस वे बनाने बहुत जरूरी हैं, ये बनने ही चाहिए, इनसे लाखों गरीब मजदूरों को रोजी-रोटी भी मिलेगी। इनसे जाम, प्रदूषण से राहत मिलेगी, समय और धन की बचत होगी, तरक्की की नई राह भी खुलेगी। लेकिन इन्हें बनाते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि जहां तक संभव हो, हरे-भरे पुराने वृक्षों को न काटा जाए जैसे चारधाम यात्रा के लिए सड़कों का चौड़ीकरण करने में 900 किलोमीटर की दूरी में लाखों हरे-भरे, पुराने, मोटे देवदार के बेशकीमती वृक्षों को निर्ममतापूर्वक काट दिया गया। इससे प्रकृति और पर्यावरण की अपूरणीय क्षति हुई है। उन अमूल्य पेड़ों जैसा प्राकृतिक योगदान करने लायक अवस्था प्राप्त करने में कथित सरकारी वृक्षारोपण के दौरान लगाए जाने वाले शिशु पौधों को कई सौ साल लग जाएंगे। यह कटु सत्य है कि इस देश के सभी जीव (और मनुष्य भी) बगैर एक्सप्रेस वे और चारधाम यात्रा के भी जी सकते हैं, लेकिन हरे-भरे पेड़-पौधों के बगैर नहीं जी सकते। इसलिए हरे-भरे पेड़ों के कम से कम नुकसान पहुंचाए बगैर ही एक्सप्रेस वे बनें। प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण प्रथम प्राथमिकता रहनी ही चाहिए।
हिमालय के घने प्राकृतिक जंगलों में हर मौसम में खुली रहने वाली इन चौड़ी सड़कों पर जब दिन-रात मुंबई और दिल्ली की तर्ज पर रईसों की गाड़ियां अपनी तेज रोशनी और प्रेशर हार्न के साथ फर्राटा भरेंगी तो सबसे ज्यादा नुकसान उन शांत और मानव बस्तियों से दूर रहने वाले वन्य प्राणियों को होगा जो वैसे भी विलुप्ति के कगार पर हैं। वे इस पृथ्वी पर अपने अस्तित्व की अपनी अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं और तेजी से इस धरती से सदा के लिए विलुप्त हो जाएंगे। इनमें भारत की शान भारतीय बाघ भी हैं। सभी ऋतुओं में निर्बाध रूप से खुले रहने वाले एक्सप्रेस वे की तर्ज पर सड़क बनाने से हिमालय के कच्चे पहाड़ों, जो देश की 80 फीसद जैव और वानस्पतिक विविधताओं से संपन्न हैं, को अपूरणीय क्षति होगी।अफसोसनाक है कि इस बात को ठेकेदार, अफसर और राजनीतिकों की जमात को समझाया नहीं जा सकता क्योंकि सभी के अपने-अपने फायदे हैं। धर्म और आस्था को भुनाने के नाम पर और यहां की अधिकांश धर्मभीरु जनता को आस्था की आड़ में अपनी सत्ता की पकड़ मजबूत करने के लिए लाखों पेड़ों की बलि चढ़ा कर, पर्यावरण की कीमत पर सड़कों को चौड़ा करने का यह निर्णय देश, समाज और भावी पीढ़ी के लिए सर्वथा अनुचित है।
’निर्मल कुमार शर्मा, प्रताप विहार, गाजियाबाद
सच का साथ
अक्सर देखा जाता है कि जब किसी के साथ आपराधिक वारदात होती है तो उसके चश्मदीद भी गवाही देने से इंकार कर देते हैं। देश के ज्यादातर लोग ऐसी हालत में गवाह बनने से बचते हैं। नतीजतन कई लोग अपराध करने के बावजूद निर्दोष साबित हो जाते हैं, जो बहुत अफसोसनाक है। हमें हमेशा सच का साथ देना चाहिए और गवाही देने के अपने नागरिक कर्तव्य से मुंह नहीं चुराना चाहिए। इससे सबका मानवता में विश्वास जगेगा और लोगों को न्याय भी मिलेगा। हमारे थोड़े से डर के कारण लोगों को न्याय नहीं मिलता है। अगर हम वारदात वाली जगह पर थोड़ी-सी हिम्मत दिखा दें तो अपराधी पकड़ा भी जा सकता है।
’रवि रंजन कुमार, बठिंडा