पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण अड्डे पर भारतीय वायु सेना के हमले में मारे गए आतंकवादियों की संख्या के बारे में पिछले कुछ दिनों से बहसबाजी हो रही है। यहां एक बात समझ में नहीं आ रही कि वायुसेना बमवर्षा कर सकुशल अपने क्षेत्र में तुरत-फुरत लौटने का यत्न करेगी या लाशों की गिनती करने में जुट जाएगी? हमें नहीं भूलना चाहिए कि वायुसेना के पायलट का काम लक्ष्य को भेदना होता है। उससे यह अपेक्षा करना गलत है कि हमले के बाद विमान को कहीं उतार कर वह मारे गए आतंकियों के शवों को गिने। बताया जा रहा है कि बालाकोट में 300 मोबाइल फोन सक्रिय थे। इसका मतलब हुआ कि लगभग इतने ही लोग उस जगह पर मौजूद थे। बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों पर भारतीय वायुसेना के हवाई हमले पर वायुसेना प्रमुख का यह कथन भी मायने रखता है कि ‘हमारा काम आतंकी ठिकानों को तबाह करना होता है, उनके शवों की गिनती करना नहीं है। हम कोई लक्ष्य साधते हैं तो उसे तबाह कर ही देते हैं।’

समय आ गया है कि इधर-उधर की बातें न कर सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर भारत की जनता के साथ मिल कर सेना का समर्थन करें और उसका हौसला बढ़ाएं। ऐसा करने से देश की संप्रभुता और अखंडता को बल मिलेगा और देश विरोधी ताकतें परास्त होंगी। हमें यह नहीं भूलना चागिए कि सेना अपना काम बखूबी जानती है।
’शिबन कृष्ण रैणा, अरावली विहार, अलवर

गांवों की सुध
सत्ताईस फरवरी के अंक में ‘शहरीकरण की चुनौतियां’ लेख में अत्यंत महत्त्वपूर्ण मुद्दे को उठाया गया है। यह बात गौर करने लायक है कि 2050 तक देश की 50 फीसद आबादी शहरों में निवास करेगी और हमारी सरकार के पास इसे गांवों में रोकने का कोई भी कारगर उपाय नहीं है। जो उपाय किए भी गए हैं वे नाकाफी साबित हुए हैं। गांवों से बड़ी तादाद में शहरों की ओर पलायन होने से सरकार और आम आदमी दोनों की चुनौतियां बढ़ेंगी। प्रदूषण, यातायात, शिक्षा, रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों से आम नागरिकों को जूझना पड़ेगा। सरकार के छोटे-बड़े प्रयास गांवों को बचाने के लिए हो रहे हैं लेकिन ऐसे ठोस उपाय किए जाने चाहिए कि गांव के लोगों को गांव में ही रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं मिल सकें ताकि उन्हें शहरों की ओर रुख न करना पड़े। ऐसा नहीं किया गया तो आने वाला समय भयावह होगा। इसका ताजा उदाहरण दिल्ली जैसे महानगरों की बढ़ती समस्याओं के रूप में देखा जा सकता है।
इसके साथ जो दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू जुड़ा हुआ है वह है देश में पूंजी का असमान वितरण। आज भी देश की 70 फीसद आबादी खेती से जुड़ी है जबकि किसानों पर होने वाला खर्च इस अनुपात में 60 फीसद से भी कम है। इस संदर्भ में सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा। पहले की सरकारों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया जिसके कारण अभी तक यह समस्या यथावत बनी हुई है।
’धर्मेंद्र प्रताप सिंह, रायबरेली रोड, लखनऊ</p>