अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री ने साफ कह दिया है कि जो लोग कश्मीर के विकास की राह में रोड़ा बन रहे हैं और नफरत फैलाना चाहते हैं, उनके नापाक इरादे कामयाब होने वाले नहीं हैं। प्रधानमंत्री की ओर से ऐसे किसी बयान की आवश्यकता इसलिए थी कि एक तो इन दिनों कश्मीर चर्चा के केंद्र में है और दूसरे, केंद्र सरकार से यह अपेक्षा बढ़ गई है कि वह घाटी को पटरी पर लाने के लिए हरसंभव उपाय करे। गृहमंत्री बनने के बाद से अमित शाह कश्मीर पर खास ध्यान दे रहे हैं। सबको भरोसा है कि मोदी-शाह कीजोड़ी कश्मीर की समस्याओं को सुलझा कर रहेगी। बीते दिनों कश्मीर में सुरक्षा बलों की सौ अतिरिक्त कंपनियां बुलाने के साथ ही वहां राजनीतिगरमा गई। बयान सामने आने लगे कि धारा 35 ए को हाथ भी लगाया तो सारा कश्मीर सुलग उठेगा जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि ये कंपनियां सिर्फ कश्मीर की सुरक्षा के लिए तैनाती की गई हैं।
कैसी विडंबना है कि एक तरफ केंद्र सरकार आतंकवादियों और अलगाववादियों पर नकेल कस रही है तो दूसरी तरफ घाटी के नेता आतंकवादियों और अलगाववादियों की वफादारी कर रहे हैं। इस सबके बीच मासूम कश्मीरियों की आवाज दब रही है। क्या उन्हें निडर होकर जीने का हक नहीं? आएदिन के आतंकी हमले उन्हें डर की जिंदगी जीने को मजबूर कर रहे हैं। कर्फ्यू या पत्थरबाजी से कश्मीरी बच्चों की शिक्षा पर बहुत बुरा असर पड़ता रहा है। सरकार अब आतंकी वित्त पोषण पर रोक लगाने के सख्त प्रयास लगातार कर रही है जिस कारण पत्थरबाजी कम हुई है। सरकार के कड़े रुख से लगता है कि कश्मीर के हालात जल्द बदलेंगे।
राघव जैन, जालंधर
खुद से शुरुआत
अगर हम 250 ग्राम का मोबाइल और 300 ग्राम का ‘पावर बैंक’ अपनी जेब में रख सकते हैं तो 30 ग्राम का कपड़े का थैला क्यों नहीं? बढ़ता हुआ प्लास्टिक हमारे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है। इस पर दुख तो सब जताते हैं लेकिन उसे रोकने के लिए आज तक कितनों ने क्या किया? ग्राहक दुकानदार को कपड़े का थैला रखने को कहता है और दुकानदार ग्राहक को। दुकानदार को कपड़े के थैले में सामान देना महंगा सौदा लगता है और पर्यावरण के लिए वह यह नुकसान सह ले, ऐसे निस्वार्थी दुकानदार बहुत कम हैं।
तो क्यों न शुरुआत हम खुद से करें! क्यों न हम सब्जी, फल या अन्य सामान लेने के लिए घर से कपड़े का थैला ले जाना शुरू कर दें? गाय, व्हेल मछलियां जैसे हजारों अन्य जीव-जंतुओं की हर साल प्लास्टिक खाने से मौत हो जाती है। गंदगी हम लोग फैलाते हैं और उसकी कीमत मासूम जीव-जंतुओं को चुकानी पड़ती है! क्या यह उचित है? क्या हमें यह सब रोकना नहीं चाहिए? अगर रोकना चाहते हैं तो सिर्फ एक तीस ग्राम का कपड़े का थैला अपने साथ रखना है ताकि प्लास्टिक से दूरी बनाए रखें। शुरुआत आज, अभी से करें।
संदीप राणा, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली</p>

