इस साल इक्कीसवें फीफा विश्वकप में जिस एक देश ने अपने करिश्माई खेल से दर्शकों को आकर्षित किया, वह है क्रोएशिया। उसने शानदार खेल का प्रदर्शन करते हुए फाइनल तक का सफर तय किया लेकिन फ्रांस के हाथों 4-2 से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि फाइनल तक का सफर भी क्रोएशिया के लिए आसान नहीं था। उसकी टीम में न तो मेस्सी, नेमार, रोनाल्डो जैसे कोई बड़े नाम थे और न ही उसकी टीम ने इससे पहले कभी फाइनल तक का सफर तय किया था। यहां तक कि लुका मौड्रिच और अन्य खिलाड़ियों को शरणार्थी शिविर तक में फुटबॉल का प्रशिक्षण लेना पड़ा है।

1918 से 1991 के बीच क्रोएशिया युगोस्लाविया का हिस्सा रहा और 1991 में बढ़ते तनाव के दौरान 25 जून 1991 को उसने अपनी आजादी की घोषणा की। क्रोएशिया दक्षिण-पूर्व यूरोप में स्थित प्राकृतिक वादियों से परिपूर्ण एक बेहद खूबसूरत देश है, जिसकी जनसंख्या करीब 42 लाख और क्षेत्रफल 56594 वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से क्रोएशिया भारत के कई राज्यों से बहुत छोटा देश है। लेकिन उसकी टीम ने साबित कर दिया कि भले ही कोई देश या शहर कितना ही छोटा क्यों न हो, वहां बसने वाले लोगों की सोच और सपने छोटे नहीं होते। अगर हम दृढ़ संकल्पित होकर सकारात्मक सोच के साथ लक्ष्य की तरफ बढ़ें तो दुनिया की कोई भी शक्ति हमारा रास्ता नहीं रोक सकती। क्रोएशिया की टीम की उपलब्धि उन युवाओं के लिए एक सीख है जो छोटे शहरों में रहने के बावजूद कुछ करिश्माई प्रदर्शन करना चाहते हैं।
’कुंदन कुमार क्रांति, बीएचयू, वाराणसी</strong>

वादों का हिसाब
2017 में स्विस बैंक में भारतीयों के पैसे में 50 फीसद की बढ़ोतरी की खबर के बाद सरकार कठघरे में खड़ी दिखाई दे रही है। जहां एक ओर वह काला धन रखने वालों के खिलाफ अभियान चलाए हुए है वहीं दूसरी ओर स्विस बैंक में भारतीयों के जमा धन में बढ़ोतरी की खबर ने उसकी चिंता और बढ़ा दी है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने जनता को भरोसा दिलाया था कि उसकी सरकार विदेशों में जमा काला धन वापस लाएगी! मगर जनता आज भी सवाल पूछ रही है कि कितना काला धन वापस आया है? काला धन वापस आने की बात तो दूर, बड़े-बड़े कारोबारी बैंकों को चूना लगा कर विदेश जा चुके हैं जिन्हें वापस लाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।

एक ओर हमारे देश के ‘अन्नदाता’ बैंकों से लिया मामूली कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या पर मजबूर हो जाते हैं वहीं दूसरी ओर भ्रष्ट लोग देश के पैसे को अपनी अमानत बना कर अपने पास रख लेते हैं। कालेधन पर लगाम लगाने के लिए ही नोटबंदी और जीएसटी को लागू किया गया था। जैसे-जैसे आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे सरकार की परेशानियां बढ़ती जा रही है। जाहिर है कि कालेधन को लेकर सरकार चिंतित तो जरूर होगी क्योंकि कुछ दिनों के बाद जनता को काला धन वापस लाने के वादों का हिसाब जो देना है।
’पियुष कुमार, नई दिल्ली</strong>