हैदराबाद के केंद्रीय विश्वविद्यालय के पीएचडी स्कॉलर छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या से एक बार फिर देश की राजनीति गरमा गई है। नेताओं ने इसे जाति और धर्म का चश्मा लगा कर देखना शुरू किया है और तरह-तरह की बयानबाजी कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। कोई पिछड़ा-दलित के नाम पर सहानुभूति जता रहा है तो कोई देश के असहिष्णु होने की बात कर रहा है। बात जब आत्महत्या तक पहुंच गई तो सभी नेताओं की नींद खुली और चल दिए अपनी राजनीति चमकाने। स्वार्थ की राजनीति से कब तक नेता लोगों को उल्लू बनाते रहेंगे?

आज पूरे देश में रोहित की आत्महत्या का मुद्दा छाया हुआ है। किसी पार्टी या नेता ने तब बात क्यों नहीं उठाई जब पांच दलित छात्रों को विश्वविद्यालय से निष्काषित किया गया था?  अगर समय पर यह मुद्दा उठाया जाता तो आज एक छात्र को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती। रोहित वेमुला पर जो भी आरोप लगाए गए थे, मुकदमे दर्ज किए गए थे वे सही हैं या नहीं यह जांच का विषय है।

पिछले वर्षों में देश के अनेक किसानों ने फसल नष्ट होने और कर्ज में डूबने के कारण आत्महत्या कर ली लेकिन यह कोई राष्ट्र स्तरीय मुद्दा नहीं बना क्योंकि किसान की आत्महत्या जाति या धर्म से संबंधित नहीं थी। इसी साल देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। लिहाजा, सभी पार्टियां और नेता अपना वोट बैंक बनाने के लिए जाति या धर्म का सहारा लेने में लगे हैं। जब-जब चुनाव की घोषणा होती है जाति और धर्म के नाम पर देश की एकता को तोड़ कर अपना वोट बैंक बनाने के लिए सभी नेता खड़े हो जाते हैं। हाल में संपन्न बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में एक युवक को घर में गोमांस होने के संदेह में पीट-पीट कर मारे जाने की घटना ताजा उदाहरण है।

नेता या पार्टियां अगर वास्तव में दलितों और पिछड़ों को आगे बढ़ाना चाहते हैं या खुद को उनका हितैषी साबित करना चाहते हैं तो लाश पर राजनीति करने की बजाय उनकी समस्याएं-परेशानियां दूर करने के लिए हर समय साथ खड़े रहना होगा। आज जिस प्रकार खुलेआम अगड़ी-पिछड़ी जातियों या धर्म को लेकर राजनीति हो रही है और वोट बैंक बनाया जा रहा है वह आने वाले दिनों के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

निस्संदेह एक छात्र का आत्महत्या करना देश के लिए दुखद घटना है। कथित रूप से यह किसी छात्र संगठन द्वारा रची गई साजिश थी, जिसे कई नेताओं और मंत्री का भी सहयोग था। इस घटना से हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लग गया है। देश में सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। ऐसे में अगर किसी दल या व्यक्ति द्वारा किसी को आत्महत्या करने पर मजबूर किया जाता है तो कानूनन उसे सजा मिलनी चाहिए। आज देश में जाति के मुद्दों को तूल देने के बजाय सभी को न्याय दिलाने के लिए लड़ने की आवश्यकता है ताकि फिर किसी छात्र को अपनी जान न गंवानी पड़े।
’प्रताप तिवारी, सारठ, झारखंड</p>