यह कैसी विडंबना है कि एक तरफ रसोई गैस सब्सिडी छोड़ने के आह्वान के बाद अब वरिष्ठ नागरिकों को रेल टिकट पर अनुदान और वास्तविक दर लिख कर अगले कदम के रूप में रेल यात्रा अनुदान छोड़ने की पृष्ठभूमि बनाई जा रही है तो दूसरी ओर नैगमिक और औद्योगिक घरानों को करों और तमाम शुल्कों में छूट बरकरार है। विमानन कंपनियों को भी बीस प्रतिशत अनुदान के प्रावधान किए जा रहे हैं।

भव्य आधारभूत ढांचे, बढ़े आर्थिक सूचकांक और ऊंची विकास दर की आकांक्षा के साथ मानव पूंजी सूचकांक में फिसड्डी से अग्रिम पंक्ति में आने के प्रयास के बिना विश्वशक्ति बनने का स्वप्न कैसे साकार होगा? हालांकि यह असंभव कार्य नहीं है, लेकिन इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ-साथ कुछ प्राथमिकताओं में बदलाव आवश्यक है। क्या इस बदलाव के लिए हम तैयार हैं? हमें नहीं भूलना चाहिए कि केवल सपने देखने भर से वे सच नहीं हो जाते।

सुरेश उपाध्याय, गीता नगर, इंदौर</strong>