सरकार के पांच सौ और एक हजार रुपए के पुराने नोट बंद करने के फैसले का दूरगामी असर जो भी रहे, आम आदमी को आज अत्यधिक परेशानी का अनुभव हो रहा है। नौकरी छोड़ छह-आठ घंटे लाइन में लग कर जब नकदी खत्म होने की सूचना आती है, आम इंसान टूट जाता है। झुंझलाहट में कुछ कहा तो बात कब बिगड़ कर दंगा-फसाद का रूप ले ले, कहा नहीं जा सकता। कुछ जगहों से तो 2000 के जाली नोटों के प्रयोग की भी जानकारी मिली है। रिक्शावाला, शादी के लिए तैयार घर और दिहाड़ी श्रमिकों की समस्या काफी बढ़ गई है। अस्पताल में मौत से जूझ रहे परिवार, क्या दूरगामी राष्ट्र-निर्माण के लिए अपने प्रियजन की मौत से भी समझौता कर लें? सरकार को इस स्तर पर सुधार करना होगा, क्योंकि कोई भी सुधार इतना बड़ा नहीं हो सकता कि वह मरीजों की मौत की कीमत पर किया जाए।
’वीरेश्वर तोमर, हरिद्वार, उत्तराखंड
चौपाल: सुधार की कीमत
झुंझलाहट में कुछ कहा तो बात कब बिगड़ कर दंगा-फसाद का रूप ले ले, कहा नहीं जा सकता
Written by जनसत्ता

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First published on: 16-11-2016 at 01:33 IST