प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का हाल ही में निधन हो गया। उनके काम हमेशा याद किए जाएंगे। लेकिन इसी बीच एक ऐसी खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जो वाकई प्रकृति प्रेमियों को चिंतित करने वाली है। खबरों के मुताबिक छतरपुर जिले के बकस्वाह के जंगलों में देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार मिला है। प्रदेश सरकार ने पहले ही बुंदेलखंड क्षेत्र में हीरा की खोज के लिए 2000 से 2005 के बीच ऑस्ट्रेलियाई कंपनी रियोटिंटो से सर्वे कराया था। सर्वे के बाद कंपनी को बकस्वाह के जंगलों में नाले के किनारे किंबरलाइट पत्थर की चट्टान दिखाई दी थी और हीरा किंबरलाइट चट्टान की चट्टानों में ही मिलता है।
इसी आधार पर बताया जा रहा है कि हीरा खनन के लिए बकस्वाह के जंगल के एक बड़े हिस्से को खत्म किया जाएगा। यानी इसमें दो करोड़ से ज्यादा पेड़ों को काटे जाने का अनुमान है। इनमें कई औषधियों के पेड़-पौधे, 40,000 से अधिक सागवान के वृक्ष और मजबूत लकड़ी वाले पेड़ों की बड़ी संख्या भी है। इसके अलावा भी इस जंगल में वन्य-जीवों में जंगली तेंदुआ, बाघ, भालू, बारहसिंगा, हिरण और मोर आदि वन्य जीव पाए जाते हैं, जिनके रहने खाने-पीने पर संकट के बादल मंडराने लगेगा। सरकार ने खनन के लिए मई 2017 में कई संशोधन कर पचास साल के लिए आदित्य बिरला समूह को दे दिया है, जिसने इस परियोजना के लिए जंगल के एक बड़े हिस्से मांग की है, ताकि बाकी 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खनन और खदानों से निकला मलबा गिराने के लिए किया जा सके। इस काम को पूरा करने के लिए 2,500 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।
जाहिर है, यह पहल प्रकृति के हृदय पर बुलडोजर चला कर धरती को छलनी करेगी और साथ ही पर्यावरण असंतुलन को बढ़ावा भी देगी। जबकि सरकार दूसरी ओर पर्यावरण में संतुलन लाने की बात करती है और इसके लिए मनरेगा जैसी योजना के माध्यम से वृक्षारोपण का कार्यक्रम चला रही है। उधर भारत ने वैश्विक मंचों पर पर्यावरण में संतुलन लाने के लिए जंगल को बचाने पर जोर दिया है। जबकि अपने देश में जल, जंगल और जमीन की रक्षा करने वाले आदिवासियों की मांग को हमेशा से दरकिनार किया गया है। अब बकस्वाह के जंगलों को लेकर सरकार एक बार फिर से प्रकृति के हृदय को छलनी करने की तैयारी में हैं जो प्रकृति के साथ घोर अन्याय होगा।
नितेश कुमार सिन्हा, गया, बिहार</em>