महामारी की दूसरी लहर को भी विकराल रूप धारण किए हुए करीब डेढ़ महीना से ऊपर बीत चुके हैं, लेकिन हमारा स्वास्थ्य ढांचा हर राज्य में लचर दिख रहा है। कुछ राज्यों में टीके की कमी, तो कही टीका भंडारण की समस्या। इस महामारी से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार ऑक्सीजन है, लेकिन इसकी भी किल्लत कम होने का नाम नहीं ले रही।
हर जगह मारामारी है। मरीज ऑक्सीजन के लिए अभी भी भटक रहे हैं। जैसे ऑक्सीजन की कमी है, वैसे ही अन्य जीवनरक्षक दवाओं की। रोजाना करीब तीन से चार लाख मामले सामने आने के साथ अस्पतालों में बिस्तर की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही। हमारा स्वास्थ्य ढांचा इतने ज्यादा लोगों का एक साथ उपचार करने में समर्थ नहीं है। सीधे तौर पर कहे तो स्वास्थ्य ढांचे की इस दुर्दशा के लिए सरकार जिम्मेदार है, इसमें कोई संदेह नहीं। हालांकि अमेरिका और इटली जैसे समर्थ और कम आबादी वाले देश में भी स्वास्थ्य ढांचा भी चरमरा गया था। लेकिन वहां स्थिति संभल गई।
सही है कि इस संकट से निजात रातोंरात नहीं मिल सकती। स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करने के लिए समय के साथ ही साथ संसाधनों की कमी को पूरा करना और सभी के सहयोग की भी जरूरत पड़ेगी। पिछले साल की समस्याओं से सरकार को सीख लेनी थी और स्वास्थ्य ढांचे में सुधार करना था, लेकिन सरकार द्वारा इस पर ध्यान न देने के वजह से आज भारी जन-धन का नुकसान उठाना पड़ रहा।
दूसरी लहर का सामना करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें पूरी तरह से विफल रही हैं। समय रहते न ही किसी राज्य में ऑक्सीजन संयंत्र लग सके और न ही दवाओं का भंडारण हो सका और न अस्पताल में बिस्तरों की संख्या बढ़ सकी। अब जो भी हमसे भूल हुई उनसे सबक सीखते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आगे बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का ढांचा कैसे खड़ा हो सके।
बलराम साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़