वर्तमान के दौर में फैशन जगत हो, चाहे फिल्म उद्योग, सभी में ‘जो दिखता है, वही बिकता है’। हमारी भारतीय संस्कृति में पहले कभी ‘रूपस्याभरणम् गुणं’ की बात की जाती थी, जिसका अर्थ होता है कि व्यक्ति के रूप का तभी महत्त्व है, जब उसमें गुण हो, वरना उसकी सुंदरता व्यर्थ है। वास्तव में भी सुंदर वही व्यक्ति होता है, जो भले ही धनवान या सुंदर न हो परंतु गुणवान हो। लेकिन अफसोस कि बाहरी चमक की चकाचौंध में आज हम सब चौंधिया गए हैं। गोरे रंग को सुंदरता और गहरे रंग को बदसूरती से जोड़ कर देखने का चश्मा नजरों पर चढ़ गया है।

यह शायद एक दिन में नहीं हुआ। बचपन से ही माता-पिता बच्चों को त्वचा के रंग के नाम से डराते और दुलारते रहते हैं, यह सब कह कर कि ‘धूप में मत खेलो, नहीं तो काले हो जाओगे… दूध पी लो, रंग गोरा हो जाएगा… चाय कम पियो, नहीं तो काले हो जाओगे… या तुम्हारा फलां दोस्त इतना काले रंग का है…’ कहते हुए उसे किसी भयानक उपमा से नवाज दिया जाता है। इस तरह बचपन से ही त्वचा के रंगों में अंतर करना सिखा दिया जाता है और जब शादी-ब्याह की बात पक्की होती है तो कई बार रूप रंग और कद-काठी के गुणवान लड़के लड़की को भी नकार दिया जाता है और उन पर नाकाबिल होने का ठप्पा लगा दिया जाता है। आजकल के टीवी सीरियलों में भी यही सब कुछ दिखा कर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। आखिरकार लोगों को दिखाने और आकर्षित करने के लिए रंग-रूप का यह भेदभाव कब तक जारी रहेगा?

एक ओर रंग का गहरा या सांवला होना अभिशाप माना जाता है, वहीं इस धारणा के जरिए चंद हफ्तों में गोरा बनाने और बेदाग निखार देने के दावे के साथ क्रीम का व्यापार करने वाली कंपनियों के लिए मुनाफे का इतना बड़ा अवसर बनता है जो केवल भारत में हजारों करोड़ का व्यापार देता है। विरोधाभास यह है कि भारत में लोग कृष्ण और काली की पूजा करते हैं, लेकिन सांवले रंग वाले लोगों के प्रति हिकारत का भाव बना कर रखते हैं।

अगर रंग गुणों से अधिक महत्त्वपूर्ण होता तो आज हममें से बहुत सारे लोगों के लिए शायद कहीं कोई जगह नहीं होती! सवाल है कि क्या सांवला रंग काबिलियत या सुंदरता पर कोई बुरा प्रभाव डालता है? इसका साफ उत्तर है- नहीं। लेकिन कुछ सामाजिक सत्ता केंद्रों ने सांवले रंग को कमतर होने का आरोप थोप दिया और कम दिमाग और हीनताबोध के मारे लोगों ने उसे मानना शुरू कर दिया। इस हीनताबोध और कमअक्ली से बाहर आने की जरूरत है। तभी हम खुद को एक सभ्य और संवेदनशील इंसान कह सकने के लायक होंगे।
’मोहिनी राणा, भिवाड़ी, राजस्थान</p>