आदमी की ऐसी कभी दुर्गति होगी, कभी सोचा भी नहीं था। अस्पताल, आक्सीजन, एंबुलेंस का अभाव और मरने के बाद ठीक से अंतिम संस्कार की बात तो दूर, कहीं रेत में शव को गाड़ दिया गया तो कहीं नदियों में बहा दिया गया। आखिर ये सब क्यों हुआ? इसमें मरने वाला का क्या दोष है? कौन मरना चाहता है? न्यायलय और मानवधिकार आयोग ने सरकार से पूछा है कि ये मानव की कैसी दुर्गति है। समय रहते अगर सरकारें सचेत रहतीं तो ऐसी त्रासदी से बचा जा सकता था। पर दुर्भाग्यवश कोई भी जिम्मेवारी लेने को तैयार नहीं है।

कोरोना सिखा गया कि ढकोसले, अंधविश्वास, लापरवाही देश को ले डूबी। जब शीर्ष ही आडंबर दिखाए तो नीचे वाले को कौन कहे? धर्म के नाम पर अरबों फूकने वालों को समझ आनी चाहिए कि जीवन ज्ञान-विज्ञान, अच्छे विचारों से चलता है, झूठ बड़बोलेपन से नहीं। कोरोना की दूसरी लहर में देश में हाहाकार मचा हुआ है। रोजाना हजारों लोग मर रहे हैं। श्मशान घाटों और कब्रिस्तान में जगह कम पड़ने लगी है। गंगा नदी में लाशें बहाई जा रही हैं। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में भी गंगा किनारे रेत में दबी लाशें मिली हैं। जानकारी के मुताबिक शुक्लागंज में ग्राम रौतापुर स्थित गंगातट पर रोक के बावजूद एक महीने के अंदर करीब चार सौ शवों को गड्ढा खोद कर दफना दिया गया। सवाल है कि आखिर कौन जिम्मेदार है देश को इस गर्त में धकेलने के लिए।
’प्रसिद्ध यादव, बाबूचक, पटना