संपादकीय ‘गिरावट की मुद्रा’ (16 जून) काफी अहम लगा। देश में कोरोना काल की बंदी व्यापार व्यवसाय और रोजगार के मामले में काला इतिहास साबित हुई है। इस दौरान कितने ही लोगों की रोजी-रोटी छिन गई और उन्हें सड़कों पर आना पड़ा। बंदी की भयानक विभीषिका आज भी नजर आती है। आर्थिक मंदी के कारण व्यवसाय को गति नहीं मिल पा रही, जिससे लोगों को रोजगार मुहैया हो सके।

सरकार ने 2023 तक दस लाख युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने का जो एजेंडा जारी किया है, वह स्वागत योग्य है। रोजगार के अवसरों और नौकरियों की उपलब्धता ही आर्थिक मंदी से लोगों को उबार सकती है। नौकरियों को लेकर सरकार की मंशा पर शंका नहीं है, लेकिन संपादकीय में जिन चुनौतियों को रेखांकित किया गया है उन पर गौर करना जरूरी है, तभी सरकार के ख्वाब पूरे हो सकेंगे।

अमृतलाल मारू ‘रवि’, दसई, मप्र