देश के गांव भी अब महामारी की चपेट में आ गए हैं। आजादी के सात दशक बाद भी बड़ी संख्या में ऐसे गांव हैं जहां चिकित्सा सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है। ऐसे में महामारी के वक्त में गांवों की क्या दुर्दशा हो रही होगी, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल नहीं है। बहुत से ऐसे गांव भी हैं जहां तक पहुंचने के लिए यातायात के उचित इंतजाम तक नहीं हैं। इस कारण इन गांवों में कोरोना संक्रमितों को अस्पताल पहुंचाने तक के लिए पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। बिस्तर या पालकी के जरिए मरीजों को अस्पताल तक ले जाने के लिए गांव से मुख्य सड़क तक पहुंचाने वालों को भी संक्रमित होने का खतरा पैदा हो सकता है। सरकार और प्रशासन को इसके लिए कुछ इंतजाम करने चाहिए।
ग्रामीणों को संक्रमण से बचाने के लिए उन्हें महामारी के प्रति जागरूक करना भी जरूरी है। ग्रामीणों को यह भी समझाया जाना चाहिए कि वे झोलाछाप डॉक्टरों या तंत्र-मंत्र करने वाले ओझाओं के जाल में न फंसे। अंधविश्वास या गलत चिकित्सा जान को जोखिम में डाल सकती है। लोगों को इससे बचा पाना तभी संभव है जब सरकार और प्रशासन हर गांव में अस्थायी रूप से ही अस्पताल खोलें और एंबुलेंस का इंजताम किया जाए। कोरोना के प्रति गांवों के निवासियों को जागरूक करने के लिए सरकार, प्रशासन और युवाओं को गंभीरता दिखानी चाहिए। उन्हें यह समझाना चाहिए कि कोरोना के लक्षण महसूस होने पर अपने निकटतम किसी शहर मे जाकर अपनी टेस्टिंग करवाएं, कोरोना टीका लगाएं और कोरोना के प्रति सावधानी और सतर्कता बरतें।
’राजेश कुमार चौहान, जलंधर