बक्सवाहा के जंगलों को हीरों के लिए तहस-नहस किया जा रहा है। केन बेतवा परियोजना के लिए लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के तरौद देहान प्रोजेक्ट के तहत आठ किलोमीटर की सड़क बनाने के लिए दो हजार पेड़ काटे जाने हैं। बालोद जिले में पर्यावरण प्रेमियों ने इन पेड़ों को बचाने के लिए शिव जी के पोस्टर पेड़ों पर लगा कर विरोध करना प्रारंभ कर दिया है।
इसी तरह बक्सवाहा के जंगलों को बचाने और केन बेतवा परियोजना के तहत काटे जाने वाले वृक्षों को बचाने के लिए पर्यावरण प्रेमी, बुद्धिजीवी, लेखक, पत्रकार, विद्यार्थी सभी अपने अपने स्तर पर विरोध कर रहे हैं। दूसरी ओर, जिधर देखें, उधर विकास के नाम पर पेड़ पौधों की बलि चढ़ाई जा रही है। जबकि जीने के लिए प्राणवायु जरूरी है। यह प्राणवायु जंगलों से मिलती है। इसलिए पर्यावरण प्रेमियों, बुद्धिजीवियों और जनता के साथ-साथ- संचार माध्यमों को भी इन जंगलों को कटने से बचाने के लिए आगे आना होगा। सरकार को भी ध्यान देना होगा कि विकास ऐसा हो, जिसमें काम भी हो जाए और जंगलों का विनाश न हो।
जिस तरह से मधुमक्खी शहद के लिए पेड़-पौधों, फूलों-पत्तियों से रस लेती है, लेकिन उनका विनाश नहीं करती, ठीक उसी तरह से विकास होना चाहिए। पेड़-पौधों को काटे जाने और जंगलों के विनाश का परिणाम जगजाहिर है- मौसम का असंतुलित, अनियमित होना। पेड़-पौधों और जंगलों के प्रति अब नहीं जागे तो बड़ा नुकसान हो जाएगा!
-हेमा हरि उपाध्याय अक्षत, उज्जैन, मप्र