देश में एक बार फिर कोरोना के डराने वाले आंकड़े सामने आने लगे हैं। अगर ये आंकड़े इसी रफ्तार से बढ़ते रहे तो हालात बहुत बिगड़ जाएंगे। हालत यह है कि अब देश के कई हिस्सों में रात्रि कर्फ्यू और छोटे पैमाने पर पूर्णबंदी लगा कर कोरोना से लड़ने की तैयारी की जा रही है। हैरानी की बात यह है कि लोग राज्य सरकारों की तरफ देख रहे हैं कि सरकार इस पर क्या निर्णय लेती है। लेकिन इस बार कोरोना से लड़ाई सरकारों से ज्यादा हमें खुद लड़नी होगी, क्योंकि पिछले साल देश में लगी पूर्णबंदी के दंश से देश की अर्थव्यवस्था अभी उबर नहीं पाई है। ऐसे में दोबारा पूर्णबंदी की घोषणा देश के साथ बेईमानी करने जैसी होगी।
पिछले साल जब देश में कोरोना ने दस्तक दी थी तो दुनिया की निगाहें भारत की तरफ टिकी थीं। हर कोई यही सोच रहा था कि भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में कोरोना आखिर कितना कहर बरपाएगा। लेकिन यहां सरकार और लोगों ने काफी सूझ-बूझ दिखाई। आज कोरोना देश में एक बार फिर से मुंह उठा रहा है, तो हमें पहले ही सचेत हो जाना चाहिए। इसलिए हमें बिना किसी सरकारी आदेश के इंतजार के बाजारों में इस महामारी से बचाव के लिए तय नियम-कायदों का पालन करना चाहिए। कोरोना की रफ्तार को रोककर हम सिर्फ जान ही नहीं, बल्कि अपने जहान को बचाने में भी कामयाब होंगे।
पिछले साल हमने देखा था कि पूर्णबंदी के दौरान किस तरह लोगों को परेशान होना पड़ा था। रोजी-रोटी से लेकर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई सब चौपट हो गई थी। इतिहास गवाह है कि भारत में साल 1920 में जब स्पेनिश फ्लू की दूसरी लहर ने दस्तक दी थी, तो बेहद घातक साबित हुई थी।
स्पेनिश फ्लू की पहली लहर में जहां देश में एक लाख लोगों की मौत हुई थी, वहीं दूसरी लहर करीब पांच लाख लोगों को मौत की नींद सुला गई थी। होली के त्योहार पर हमने देखा कि किस तरह देशभर में सरकारी नियमों को ताक पर रख दिया गया। लोगों ने होली के मौके पर जिस तरह होली खेली वह कोरोना को निमंत्रण देने जैसा है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि एक बार फिर अगर देश में कोरोना ने पैर पसार लिए तो स्थिति शायद पहले से विकराल हो जाएगी।
’रोहित यादव, रोहतक, हरियाणा
संसद की उपयोगिता
अगर माननीय सांसद सदन में केवल आना-जाना कर महज उपस्थिति दर्ज करते रहें और कोई प्रश्न ही न पूछें या मौन धारण कर नेता के आदेशानुसार समर्थन या विरोध करते रहें, तो इसे दलीय अनुशासन नहीं, बल्कि जनता की अनसुनी करना ही कहना अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि हर सांसद को रोजाना पांच प्रश्न पूछने का अधिकार प्रदत्त है।
इस सत्र में पैंतीस सासदों द्वारा प्रश्न ही न पूछना और छह सांसद का सदन में मौन रहने को क्षेत्रीय जनता, दल और सदन के प्रति उदासीन रवैया अपनाया, जो ठीक नहीं है। सरकार और चुनाव आयोग भारी धन खर्च कर जिन्हें संसद में पहुंचाता हो, उन्हें सदैव याद रखना चाहिए कि कि सदन में जनहित के प्रश्न उठाना है। प्रश्न का नंबर आए या न आए, लेकिन प्रश्न उठाना जागरूक और विवेकशील सांसद का हक, कर्त्तव्य और दायित्व भी है।
’बीएल शर्मा, ‘अकिंचन’, तराना-उज्जैन, मप्र