प्रति वर्ष 26 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस’ मनाया जाता है। नशीली वस्तुओं और पदार्थों के निवारण के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 7 दिसंबर, 1987 को यह प्रस्ताव पारित किया था और तभी से हर साल लोगों को नशीले पदार्थों के सेवन से होने वाले दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से इसे मनाया जाता है। कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों के कारण नशे की समस्या के और विकराल होने की संभावना है, जिसके चलते सरकार को इस विषय पर गंभीर होने के आवश्यकता है। कोरोना के चलते बढ़ती बेरोजगारी, प्रतियोगिता, व्यवसाय में हानि, शारीरिक और मानसिक कष्ट, करीब लोगों की मृत्यु और अन्य महामारी के दुष्प्रभावों के कारण बडी संख्या में लोग अवसाद और अन्य मानसिक समस्याओं से गुजर रहे हैं। चिंता और निराशा के इस माहौल में किसी भी व्यक्ति के नशे का शिकार हो जाने की संभावना प्रबल रहती है।
सरकार की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार देशभर में दस से पचहत्तर साल की आयु वर्ग के चौदह प्रतिशत यानी करीब सोलह करोड़ लोग शराब पीते हैं। शराब के बाद नशे के लिए भांग का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है। लगभग तीन करोड़ लोग भांग का नशा करते हैं। इसके अलावा अफीम, हेरोइन, कोकीन और अन्य मादक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी नशे की लत का शिकार हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि करीब छह करोड़ लोग ऐसे भी हैं जिनकी शराब और दूसरे नशीले पदार्थों पर निर्भरता इस कदर बढ़ चुकी है कि उन्हें इलाज की जरूरत है।
नशे की समस्या शहरी और ग्रामीण दोनों ही जगहों पर व्याप्त है। किसी भी इस तरह के लत से ग्रस्त व्यक्ति में कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं, जिससे उनकी मृत्यु भी संभव है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जहरीली शराब पीने से लगभग पचास लोगों की मृत्यु हो गई थी। इस तरह की घटनाएं देश सें अक्सर होती रहती हैं, लेकिन मानो सरकार ने तब तक के लिए आंखें मूंद कर रखना जरूरी समझा है, जब तक कि इससे को बड़ी समस्या न खड़ी हो जाए।
नशे के कारण शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि के साथ ही व्यक्ति के सम्मान में कमी आने लगती है, जिससे वह पारिवारिक और सामाजिक दूरी बना कर नशे की गिरफ्त में सिमटता चला जाता है। अभी हमारे देश में नशाखोरी की समस्या से निबटने के लिए पर्याप्त और बेहतर गुणवत्ता वाला परामर्श, इलाज और पुनर्वास आदि सुविधाओं का अभाव है।
कोरोना महामारी के दुष्प्रभाव के चलते कहीं ऐसा न हो कि नशे की समस्या भी महामारी का रूप धारण कर ले। सरकार और अन्य संस्थाओं को इस समस्या का आकलन कर शीघ्र ही नशे की लत से जूझ रहे व्यक्ति और उसके परिवार को बेहतर परामर्श सेवाएं, घर और संस्थागत इलाज, पुनर्वास आदि सुविधाएं मुहैया कराने की योजना पर काम करने की जरूरत है। साथ ही इन सुविधाओं को समुदाय स्तर पर लेकर जाना होगा, जिससे पीड़ित व्यक्ति बिना शर्म और भय के नशे की लत से निजात पा सके।
’अश्वनी राघव ‘रामेन्दु’, नई दिल्ली</p>