भारत में पानी के प्राकृतिक स्रोतों की कमी कभी नहीं रही, अब यहां भी पानी का संकट पैदा हो जाता है। हालांकि हमारे देश में अभी भी बहुत से क्षेत्रों में पीने वाला साफ पानी बहुत आसानी से मिल जाता है, लेकिन जिनको पानी आसानी से मिल पाता है, वे पानी की कद्र न करते हुए उसे फिजूल बर्बाद करते रहते हैं। जल संकट हमारे देश के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसके लिए किसी ने कहा भी है कि पानी के लिए विश्व युद्ध भी हो सकता है। भारत सरकार ने जल संरक्षण के लिए जल शक्ति मंत्रालय बनाया है। यह मंत्रालय जल संरक्षण के लिए क्या-क्या कदम उठाएगा या यह कितना जल संरक्षण कर पाएगा, यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन फिलहाल इस मसले पर कुछ भी ठोस होता नहीं दिख रहा।

दरअसल, सरकारें जल संरक्षण के लिए कायदे-कानून तो बना सकती हैं, लेकिन वे तभी कामयाब हो सकती हैं, जब देश के सभी लोग इसमें अपना योगदान दें। देश में गिरता भूजल स्तर भी काफी चिंता का विषय है। अगर देश में इसी रफ्तार से भूजल स्तर गिरता रहा तो देश में रेगिस्तानों की संख्या बढ़ जाएगी। अगर जल की बर्बादी को नहीं रोका गया तो फिर सरकारें भी देश की प्यास बुझाने के लिए कुछ नहीं कर सकेंगी। जल संकट के लिए जनसंख्या वृद्धि से लेकर प्रकृति का नाश तक मुख्य कारण माने जा सकते हैं।

बढ़ती जनसंख्या के साथ जल की मांग भी बढ़ती जा रही है, लेकिन मानवीय भूलों के कारण जल का स्तर धरती के ऊपर-नीचे कम होता जा रहा है। कई जरूरी या फिर गैरजरूरी वजहों और बहानों से प्रकृति का दोहन भी बढ़ता जा रहा। इससे मौसम का चक्र बिगड़ रहा और बारिश भी कम हो रही है। कम बारिश भी जल संकट का एक बड़ा कारण बन रही है। जल संकट से निपटने के लिए जनसंख्या वृद्धि और प्रकृति के दोहन को भी रोकने के लिए सरकारों और आमजन को मिलजुल कर प्रयास करने होंगे।
’राजेश कुमार चौहान, जलंधर, पंजाब</p>