आज समूचा विश्व अशांति की दौर में प्रवेश कर चुका है। शांति को अब पुन: स्थापित करना एक असंभव-सा काम हो गया है। पहले के दौर में हथियार नहीं थे, लोगों में लोभ लालच इस पैमाने का नहीं था। लेकिन आज का विश्व उसका ठीक विपरीत हो चुका है। लोगों में लोभ, लालच, ईर्ष्या, द्वेष आदि का संचार हो चुका है। भारत के संदर्भ में देखें तो विश्व को शांति का पैगाम भेजने वाला हमारा देश आज खुद अपने आप में सबसे बड़ी अशांति की चुनौती से जूझ रहा है। कुछ राज्यों से आई खबरों के मुताबिक दिनदहाड़े लोगों को गोलियों से भून दिया जा रहा है और पुलिस-प्रशासन बहुत कुछ नहीं कर पा रहा है। कहीं किसी के सिर पर लोहे की रॉड से प्रहार कर मार डाला जाता है तो कहीं जरा-सी बात पर हथियार उठा लिया जाता है।

दरअसल, इस तरह की बढ़ती प्रवृत्तियों की सबसे बड़ी जिम्मेदार सरकारें हैं, जो इस तरह की घटनाओं को काबू कर पाने में सक्षम साबित नहीं हो पा रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार से आने वाली खबरें खासतौर पर चिंता पैदा करती हैं। कुछ समय पहले बिहार के मधुबनी में खून की होली खेली जा रही थी। मधुबनी में जिस तरीके से जनसंहार हुआ, वह इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो गया। आपसी विवाद में एक पक्ष के लोगों ने दूसरे पक्ष के लोगों को गोलियों से भून दिया, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई।

सवाल है कि सबको सुरक्षा मुहैया कराने का दावा करने वाली सरकार ने कितनी सुरक्षा की! इस तरह की घटनाएं अब केवल बिहार ही नहीं, बल्कि समूचे देश के अलग-अलग हिस्सों में आम होती जा रही हैं। जरूरत है एक बहुत बड़े बदलाव की। सरकार आम लोगों से लाइसेंसी हथियार भी रखने का अधिकार वापस ले ले और अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दे। यह तभी संभव होगा जब देश में भ्रष्टाचार खत्म होगा।
’सचिन आनंद, खगड़िया, बिहार