हमारे शास्त्रों में कहा गया है- ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।’ यानी शरीर को स्वस्थ रखना ही धर्म का पहला साधन है। आज जिस तरह कोरोना महामारी से पूरी दुनिया कराह रही है, धनवान देश भी इस आपदा में बौने साबित हुए दिखे, तो ऐसे में अब समय आ गया है इस महामारी से सीख लेते हुए, खासकर भारत जैसे विकासशील देश को स्वास्थ्य के मुद्दे को प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखना चाहिए।

नीतिगत तरीके से बीमारी के इलाज के साथ ही बचाव पर भी ध्यान देना चाहिए। लोगों में स्वास्थ्य और शिक्षा का प्रसार स्वास्थ्य के मूलभूत ढांचे के दुरुस्ती के साथ-साथ होना चाहिए। स्वास्थ्य क्षेत्र में राशि के आबंटन को और बढ़ाना चाहिए, हालांकि इस बार के बजट में महामारी के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र में अधिक आबंटन किया गया था, लेकिन इस क्षेत्र में लगातार ध्यान देने कि जरूरत है, तभी हम एक स्वस्थ नागरिक वाला देश बन पाएंगे। अन्यथा वही खोखली आर्थिक तरक्की करेंगे जैसा अभी तक होता आया है।

यह समय रहते नहीं सुधारा गया तो भविष्य में और घातक साबित हो सकता है। अगर स्वस्थ नगरिक होगा तो देश भी स्वस्थ होगा। लोगों की जीवन की गुणवत्ता बढ़ेगी और साथ ही साथ लोगों में कार्य करने की क्षमता भी और कुशल होगी। आरोग्य ही संपूर्ण समृद्धि का मंत्र है। सरकार को चाहिए की स्वास्थ्य को सबसे पहले स्थान पर रखे अपनी प्राथमिकताओं में और आरोग्य भारत कि ओर कदम बढ़ाए स्वास्थ्य और शिक्षा का जन-जन तक प्रसार करके।
अमनदीप कुमार सिंह, नई दिल्ली</em>