ताजा विधानसभा चुनावों के नतीजे यही इशारा करते हैं कि कांग्रेस की डगमगाती नैया के लिए खेवैया ही जिम्मेदार है। एक राष्ट्रीय पार्टी की दशा क्षेत्रीय दलों से भी बदतर बनाने में कांग्रेस मुखिया और नेताओं की चाटुकार जमात ही उत्तरदायी हैं। पार्टी की उन्नति और देशहित परिवार मोह के आगे गौण रहा। यही कारण है कि कर्मठ और स्वाभिमानी कांग्रेसी नेताओं को अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता हुई और उन्होंने अन्य दलों से सांठ-गांठ कर ली। उन्हें दूसरी पार्टी में भविष्य उज्जवल दिखा।
कांग्रेस पार्टी में तू चल मैं आता हूं की क्रमिक घटनाएं घटती रहीं, पर पार्टी आलाकमान के कान पर जूं तक न रेंगी। शायद उन्हें भ्रम था कि ऐसे लोगों के जाने से पार्टी के चुनावी प्रर्दशन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। ऐसी मानसिकता से ऊपर उठ कर कांग्रेस को अन्य प्रदेशों के पार्टी कलह को शांत करना चाहिए ताकि भविष्य की रणनीति स्थापित की जा सके।
कांग्रेस को राष्ट्रवाद और देश की समस्याओं पर राजनीति करनी चाहिए न कि व्यक्ति विशेष पर। अवसरवादी राजनीति से परहेज करना चाहिए क्योंकि देश में अब परिवर्तन की लहर है।
- पवन कुमार मधुकर, रायबरेली