सरकारी आकड़ों में कृषि के लिए वित्त वर्ष 2020-21 में 1.23 करोड़ रुपए और 2018-19में 57,600 करोड़ रुपए आबंटित किया गया था जो 2013-14 की यूपीए सरकार से तीन गुना अधिक है। सिंचाई के क्षेत्र में निन्यानबे से अधिक परियोजनाएं शुरू की गर्इं, जिसके परिणामस्वरूप 2019 में छिहत्तर लाख हेक्टेयर भूमि को फायदा हुआ। ग्रामीण बुनियादी ढांचा कोष के लिए आबंटन चालीस हजार करोड़ रुपए दिया गया है। वर्ष 2025 तक मिल्क प्रोसेसिंग क्षमता 5.23 करोड़ टन से बढ़ा कर 10.8 करोड़ टन करने का लक्ष्य रखा गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत देश के सभी किसानों को प्रतिवर्ष छह हजार रुपए दिया जाता है। वर्ष 2021 में तकरीबन चौदह करोड़ किसान परिवारों के लिए पैंसठ हजार करोड़ रूपए आबंटित किया गया।

किसानों के हितों की रक्षा के दावे हमेशा होते रहे हैं। सरकार बदलती है, किसानों की दशा सुधारने के दावे होते हैं, लेकिन ये दावे केवल जुबानी लफ्फाजी बन कर रह जाते हैं। किसानों के हित में कई प्रयास हुए हैं, लेकिन बदलते वक्त के लिहाज से ये नाकाफी ही साबित हुए हैं। किसानों की मुसीबत शुरू से अधिक उत्पादन करने को लेकर बनी हुई थी। नई तकनीक और संसाधन ने उत्पादन तो बढ़ाया, लेकिन किसानों को उन उत्पादों का उचित दाम नहीं मिलता। फसल चौपट होने पर नुकसान के बीमा का लाभ भी किसानों को नहीं मिलता। मिल भी गया तो जैसे किसानों को उनका हक नहीं, खैरात दी जा रही हो।

दरअसल, किसानों का दर्द और उनका इलाज केवल कागजों तक सीमित रहता है। अभी कृषि और किसान की हालत इतनी बदतर है कि देश के युवाओं का कृषि से मोहभंग हो गया है। किसानों के उत्थान के लिए स्वामीनाथन समिति ने सरकार को कई सिफारिशें की थीं। लेकिन किसानों की दशा में सुधार लाने वाली उन सिफारिशों की फाइल धूल फांक रही है और किसानों के जीवन पर गरीबी और आर्थिक समस्या छाई है। सत्ता और सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचारी जुगलबंदी के आगे किसानों की दशकों पुरानी समस्या दम तोड़ देती है।

उच्च गुणवत्तायुक्त बीज सही दामों में किसान को उपलब्ध हो पाना एक बड़ी चुनौती रहती है। इक्यावन से ज्यादा ऐसे कीटनाशक हैं जो दुनिया के बाकी देशों में प्रतिबंधित हैं, पर भारत सरकार ने उनको हमारे देश में अब भी प्रयोग करने की इजाजत दी हुई है। अब तक आभिजात्य तबके के बीच सीमित रही दिल, कैंसर और अन्य बीमारियां अब किसानों के बीच भी आम हो गई हैं।

किसानों की आत्महत्या को लेकर महाराष्ट्र बदनाम है, लेकिन देश के दूसरे राज्यों में भी स्थिति कमोबेश यही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 में 11,379, जबकि 2018 में 10,349 किसानों ने खुदकुशी कर ली।

संतोष पटेल, परवेजपुर, मऊ, उप्र