पर उपदेश

प्रदूषण पर इतनी बातें हो रही हैं लेकिन लोगों की सोच और व्यवहार में कोई परिवर्तन होता नहीं दिख रहा। जब कई देशों ने हमारे यहां से भी भीषण प्रदूषण से निजात पा ली, तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते। लेकिन हमें तो दूसरों की कमी निकालनी है, खुद में सुधार करना हमारी फितरत नहीं। पराली जलाने वाले बेचारे किसानों की क्या गलती। उन्होंने तो कृषि में अपना खर्च कम करने के लिए मशीनों से फसल कटाई का काम शुरू किया था। उनकी चिंता करते हुए किसी ने ऐसा कोई उपाय तो नहीं किया कि कम लागत में उनका काम हो जाए। हम अपनी सुविधाओं में जरा भी कमी नहीं करना चाहते और सोचते हैं कि दूसरे करें और लाभ हमें भी मिले। सार्वजनिक परिवहन कम नहीं हैं लेकिन जब भी निजी वाहनों को कम करने या पूलिंग करने की बात होती है तो कोई ऐसा नहीं करना चाहता। लोग बड़ी-बड़ी गाड़ियों में अकेले चलते हैं। सवाल है कि ऐसे में फिर कैसे कम हो प्रदूषण! मैंने अपने एक परिचित से सार्वजनिक परिवहन से चलने की बात कही तो उनका कहना था कि जिनके पास अपने वाहन नहीं हैं, वे ही ज्यादा भाषण देते हैं। हालांकि वह एक शिक्षक हैं, जिनकी सोच और गतिविधियां बच्चों के लिए अनुकरणीय होती हैं। प्रदूषण की समस्या का हमारी सोच से भी गहरा संबंध है। नहीं तो, दिल्ली में सरकार ने जगह-जगह किराए की साइकिल की भी व्यवस्था कर रखी है, उसे कोई पूछता भी नहीं। अगर हम चाहते हैं कि लोग हमारे बारे में ठीक से सोचें तो हमें भी दूसरों के बारे में सही सोच रखनी होगी।
’सुशील कुमार शर्मा, उत्तम नगर, नई दिल्ली

कहां जाएं
दिल्ली विश्वविद्यालय और उससेसंबद्ध कॉलेजों में प्रत्येक वर्ष प्रवेश के लिए बहुत मारामारी रहती है। इस मारामारी में हजारों छात्र-छात्राएं ऐसे होते हैं, जो कि नियमित रूप से प्रवेश न मिल पाने के कारण पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रवेश ले लेते हैं। उन्हें उम्मीद रहती है कि एक साल के बाद किसी नियमित कॉलेज में प्रवेश मिल जाएगा। लेकिन उन्हें हताशा तब होती है जब नियमित कक्षाओं में प्रवेश नहीं मिल पाता। नियमित छात्रों को शिक्षक नई-नई बातें बताते हैं और उनकी सतत निगरानी होती है। जबकि पत्राचार पाठ्यक्रम के छात्र घिसी-पिटी लीक पर चलते रहते हैं। एक ही विश्वविद्यालय में दो तरह की शिक्षण व्यवस्था है।
’विजय कुमार धनिया, नई दिल्ली

नया खुलासा
न्याय का सिद्धांत कहता है कि प्रत्येक अपराध के पीछे कोई न कोई उद््देश्य जरूर होता है, जो अपराधी को सजा दिलाने की सबसे अहम कड़ी होता है। यह भी कहा जाता है कि आरोप जितना गंभीर होगा, उसका साबित होना भी स्पष्ट रूप से ‘संदेह से परे’ होना चहिए। रेयान स्कूल, गुरुग्राम के छात्र प्रद्युम्न की हत्या की जो नई थ्योरी लेकर सीबीआइ आई है, उस पर ध्यान देने की जरूरत है। सीबीआइ ने हत्या का मकसद परीक्षाएं और शिक्षक-अभिभावक संघ की बैठक टलवाना बताया है। अदालत में यह वजह कितना टिक पाएगी, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन सीबीआइ के निष्कर्ष ने पुलिस की जांच को कठघरे में खड़ा कर दिया है। अगर मामले को सीबीआइ को नहीं सौंपा गया होता, तो क्या पता पुलिस की जांच को ही सब लोग सही मानते रहते।
’वेद प्रकाश, गुरुग्राम

दुर्घटनाएं कैसे रुकें
एक तरफ हमारी सरकारें चौड़े-चौड़े एक्सप्रेस-वे और हाइ-वे बना रही हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से यमुना एक्सप्रेस-वे पर लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं। हाल के दिनों में धुंध के दौरान यमुना एक्सप्रेस-वे पर एक के बाद एक ताबड़तोड़ कई दुर्घटनाए हुर्इं। हुआ यह है कि हमने पश्चिम देशों की तरह चौड़ी सड़कें और तेज रफ्तार वाली गाड़ियां तो अपना लीं, लेकिन न वैसे नियम-कायदे हमने सीखे और न ही दूसरी सुरक्षात्मक चीजें लीं। इसका नतीजा यह हो रहा कि दुनिया में सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं हमारी सड़कों पर हो रही हैं। दो गाड़ियों के बीच चलते समय जो निम्नतम दूरी रहनी चाहिए, वाहन चालक उसका ध्यान नहीं रखते। नतीजा यह होता है कि जब भी कोई वाहन टकराता है तो पीछे से आने वाला वाहन अपनी गति नियंत्रित नहीं कर पाता। हाल ही में देखा गया कि यमुना एक्सप्रेस-वे पर एक दर्जन से ज्यादा वाहन आपस में भिड़ गए।
यह जरूरी है कि वाहन चालकों के लिए निर्धारित गति सीमा को सख्ती से लागू किया जाए। इसके अलावा, नशा करके वाहन चलाने वालों के ड्राइविंग लाइसेंस हमेशा के लिए निरस्त किए जाने चाहिए। यह भी देखा गया कि वाहन दुर्घटनाओं में घायल ज्यादातर लोगों की मौत इसलिए हो जाती है कि उन्हें सही वक्त पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जाता। जरूरी है कि हर बीस किलोमीटर पर एक एंबुलेंस की व्यवस्था हो।
’माधवी, सेक्टर-12, नोएडा

फिल्म और इतिहास
पद्मावती फिल्म का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। जयपुर में शूटिंग के दौरान करनी सेना ने उसके सेट पर निर्देशक संजय लीला भंसाली के साथ मारपीट की थी। अब तो फिल्म बनकर तैयार है लेकिन रिलीज को लेकर असमंजस कायम है। क्योंकि कई संगठन इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगा कर फिल्म का विरोध कर रहे हैं। हालांकि भंसाली ने कहा है कि फिल्म उन्होंने जिम्मेदारी से बनाई है और दर्शकों को यह बेहद पसंद आएगी। ऐसे में सरकार को यह नीति जरूर बनानी चाहिए कि कोई फिल्म निर्माता ऐतिहासिक फिल्में बनाते वक्त कितनी छूट ले सकता है। अगर ऐतिहासिक पात्रों पर फिल्में बनाई जाएंगी तो निश्चित ही इतिहास को भी ध्यान में रखना होगा, क्योंकि आम दर्शक फिल्म को ही इतिहास समझने की भूल कर सकता है। पहले भी कई फिल्मों में ऐसा हुआ है।
’कांतिलाल मांडोत, सूरत

विषमता का दंश
अब समय आ गया है कि देश में बढ़ती जनसंख्या, बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई, इलाज के खर्च और पढ़ाई की फीस ओर भी सरकार ध्यान दे। अभी तक सरकारों ने जो भी कदम उठाए हैं, वे नाकाफी हैं। एक तरफ गरीब, और गरीब होते जा रहे हैं, और दूसरी तरफ, अमीर और अमीर होते जा रहे हैं। पैसे वाले लोग तो अपनी हर चीजें पैसे खर्च करके पूरी कर लेते हैं, जबकि गरीब आदमी को हर जगह परेशानी होती है। अस्पताल हो या स्कूल, हर जगह वह लुटा-पिटा नजर आता है।
’शकुंतला महेश नेनावा, गिरधरनगर, इंदौर</p>