आलोचना जरूर होनी चाहिए। आलोचना नहीं होगी तो सरकारों के कान पर जूं भी नहीं रेंगेगी। कभी-कभी ही तो आलोचनाओं और विरोध की खातिर जमीन पर कुछ आता है जनता के बीच। लेकिन कुछ लोग आलोचना करते-करते सरकारों के अंधविरोधी हो जाते हैं। ऐसा कांग्रेस के समय भी हुआ था और अब भी हो रहा है। यह गलत है। हर चीज को वामपंथी-दक्षिणपंथी की नजर से नहीं देखना चाहिए।

इन दिनों कुछ लोग चुटकुले बना रहे हैं कि मोदी सरकार 2000 की जगह ‘2002’ का नोट लाना चाहती थी। यह कैसा तर्क है? भला 2002 के दंगों से 2000 के नोट का क्या मेल! इससे आप क्या साबित कर पाएंगे? लगता है जैसे लोग चुटकुले गढ़ते-गढ़ते एक आम नागरिक की तरह नहीं बल्कि किसी पार्टी के कार्यकर्ता की तरह बातें करने लगे हैं। इतना अंधविरोध ठीक नहीं है। किसी पार्टी के कार्यकर्ता की तरह चीजों को न देख कर देश के आम नागरिक की तरह चीजों को साफ चश्मे से देखना चाहिए।
’मानव यादव, भागीरथी फिल्म्स, नोएडा</p>