दो अक्तूबर को जब पूरा देश गांधी जयंती मना रहा था तब मेरठ में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने गांधी के जन्म दिवस को ‘धिक्कार दिवस’ के रूप में मनाया और संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की मौजूदगी में नाथूराम गोडसे की मूर्ति स्थापित की। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में जिस व्यक्ति ने सबसे अहम भूमिका निभाई और जिसकी वजह से भारत ने उस ब्रिटिश साम्राज्य को पराजित किया जिसका सूरज कभी अस्त नहीं होता था उस महात्मा के जन्मदिन को धिक्कार दिवस के तौर पर मनाने का कदम क्या अपने राष्ट्रपिता के प्रति कृतघ्नता का परिचायक नहीं है?
क्या हिंदू राष्ट्र का सपना उनके लिए राष्ट्र और राष्ट्रपिता से बढ़कर है? क्यों अब तक इस प्रकार के संगठन नहीं समझ पा रहे हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और धर्मनिरपेक्षता संविधान की मूल भावना है जिसे बदला नहीं जा सकता है। इसकी पुष्टि ‘बोम्मई केस 1994’ के निर्णय में भी होती है जब नौ सदस्यीय न्यायिक पीठ ने धर्मनिरपेक्षता को संविधान का बुनियादी ढांचा बताया था।
जो संगठन देश में घटने वाली हरेक घटना के संबंध में किसी को राष्ट्रवाद और देशभक्ति का प्रमाणपत्र देता है, यह कदम उस संगठन के देशभक्त होने का सबूत पेश करता है या देशद्रोही होने का? इसकी भी विवेचना होनी चाहिए।
’ललित मोहन बेलवाल, गौलापार, नैनीताल