विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में जिस तरह से अभी तक चुनाव प्रक्रिया अपनाई जाती रही है उसमें संसद के चुनाव हों या विधानसभा के, साफ और बेदाग छवि के व्यक्ति प्रवेश करें, इसके लिए भारतीय निर्वाचन आयोग के द्वारा कुछ सुधार करने बहुत ही अनिवार्य हो गए हैं। अगर हमारे देश का लोकतंत्र मजबूत होगा तो संसद या विधानसभा में चुने हुए प्रतिनिधि देश की आम जनता के अधिकार का ध्यान रखेंगे और देश के विकास और उन्नति की तरफ से कार्य करेंगे। लेकिन सवाल यह उठता है कि भारतीय निर्वाचन आयोग जिस भी राज्य में विधानसभा चुनाव कराता है या संसदीय चुनाव होते हैं तो उस समय राजनीतिक दलों द्वारा सभी से इस विषय में चुनाव में होने वाले खर्च के लिए एक निर्धारित राशि जमा करवाने को क्यों नहीं कहता? अगर कोई निर्दलीय उम्मीदवार है तो उसके पैसे की सीमा निर्धारित की जाए। राजनीतिक दलों की ओर से निर्वाचन आयोग में पैसा जमा करने के बाद विभिन्न दलों को सरकारी सुविधा मूल्य पर वाहन आदि की सुविधा प्रदान की जाए। इसके साथ-साथ कोई भी राजनीतिक दल किसी भी क्षेत्र में प्रचार के लिए किसी भी सामग्री का बेजा इस्तेमाल नहीं करे।
आयोग की ओर से ही आम जनता के सामने सभी राजनीतिक दलों के बीच आपस में मुद्दों पर बहस आयोजित हो। लोगों को सुनने और तुलना करने का मौका मिलेगा और वे सही उम्मीदवार का चुनाव कर सकेंगे। अगर ऐसा होता है तो इससे राजनीतिक पार्टियों और उनके उम्मीदवारों के पैसे के बलबूते पर चुनाव जीत कर आने पर रोक लगेगी। उम्मीदवार चाहे किसी भी राजनीतिक दल का हो, साफ और बेदाग छवि का होगा, लोकतंत्र को मजबूत बनाएगा, झूठे वादों से आम जनता को प्रभावित नहीं कर पाएगा।
’विजय कुमार धानिया, दिल्ली विवि