पहले के जमाने में कलाएं स्वांत: सुखाय होती थीं, अब वे धनार्जन का माध्यम बन गई हैं। पाकिस्तानी कलाकार अपना देश छोड़ कर हमारे देश में आकर आगर यहां फिल्मों में काम करते हैं तो कोई मानवता या भाईचारे का संदेश देने के लिए यहां नहीं आते हैं, बल्कि पैसा कमाने के लिए यहां आते हैं और मोटी रकम कमा कर वापस अपने देश चले जाते हैं। जिन दिनों उड़ी की त्रासदी हुई, ये सारे पाकिस्तानी कलाकार हमारे देश में थे। विश्व के सभ्य समाज ने उड़ी त्रासदी की कड़े शब्दों में निंदा की मगर पाकिस्तानी कलाकारों ने सार्वजनिक तौर उस हमले की मजम्मत में दो शब्द भी नहीं बोले।

यह सच है कि लेखकों, गायकों, संगीतकारों या फिर अभिनेताओं आदि की कला संबंधी अपनी एक अलग दुनिया होती है और वे देश या समाज में हो रही अव्यवस्थाओं से खुद को दूर रखने में ही अपना भला समझते हैं। यदि ऐसा है तो इन पाक कलाकारों को उनके देश में हुई पेशावर त्रासदी पर भी न तो कुछ बोलना चाहिए था और न बच्चों की आत्मा की शांति के लिए समवेत स्वर में कोई गीत ही गाना चाहिए थे। कला की दुनिया का संदेश सार्वभौमिक होता है, एक पक्षीय नहीं। मानवीय सरोकारों से दूर निजी हितों और स्वार्थों से प्रेरित कला मात्र व्यवसाय कहलाएगी, कला नहीं।
’शिबन कृष्ण रैणा, अलवर