प्रधानमंत्रीजी, आपके मन की बात सुन कर मैं भी अपनी मन की बात कहना चाहता हूं। आपने मन की बात छात्रों से साझा की, नौजवानों से साझा की और किसानों को भी बताई। मैं जानना चाहता हूं कि हमारे देश में आजादी के बाद साठ-सत्तर वर्षों में प्रगति इतनी धीमी रफ्तार से क्यों हुई? क्या इसके लिए हुकूमत करने वाले लोग दोषी नहीं हैं? गरीबों को इस देश में क्या मिला? आज तक उनकी स्थिति में कोई सुधार क्यों नहीं दिख रहा है, जबकि इसी देश में धन कुबेरों के दौलत निर्बाध रूप से बढ़ती जा रही है। कहा जाता है कि मेहनत से धन बढ़ता है। तो क्या देश में गरीब लोग ही मेहनत नहीं करते? मैं ऐसा नहीं मानता। अधिकतर लोगों के पास बेईमानी, देश की संपत्ति की लूट और तमाम अन्य नाजायज तरीकोंसे अकूत धन आया है। एक से बढ़ कर एक घपले और घोटाले इसका उदाहरण हैं।
प्रधानमंत्रीजी, आपने नशा उन्मूलन के लिए नौजवानों को प्रेरणा दी। यह सराहनीय है। लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि मुल्क में लगातार शराब की दुकानें क्यों बढ़ती जा रही हैं? सरकार के पास कोई योजना नहीं है इसे रोकने के लिए। प्रतिवर्ष शराब से हजारों युवकों के मरने की खबर आती है। कहा जाता है कि शराब परकर से सरकार की आय में वृद्धि होती है। मैं जानना चाहता हूं कि क्या राजस्व में वृद्धि जहर से होगी तो जहर बेचने की इजाजत दी जाएगी? आपने देश की महान विभूतियों को अपना आदर्श कहा। महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मदन मोहन मालवीय, भगत सिंह, लाल बहादुर शास्त्री आदि महापुरुषों को देश का गौरव बताते हुए इनके बताए रास्ते पर चलने की नसीहत दी। लेकिन आपके ही कुछ लोग इन महान विभूतियों का अपमान करने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आपसे उम्मीद थी कि ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करेंगे पर अब तक इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
किसानों को उम्मीद थी कि आप उनके मन की बात समझ कर उनके हित में कुछ साहसिक निर्णय लेंगे। लेकिन आपके मन की बात सुन कर तो किसानों की पीड़ा और बढ़ गई है। उन्हें गहरा आघात लगा कि आप उनकी जमीन छीन कर उन्हें ही समझा रहे हैं कि भरोसा रखें। जमीन एक किसान के लिए पुत्र के समान होती है। पुत्र को किसी पिता से अलग करने की पीड़ा केवल महसूस की जा सकती है, उसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता। हमारा देश कृषिप्रधान है। उसे इंग्लैंड की तर्ज की औद्योगिक क्रांति नहीं चाहिए। उसे अमेरिका और यूरोप जैसा केवल बाजार और मुनाफे पर आधारित मुल्क नहीं चाहिए। आज जरूरत है देश में किसानों के लिए सस्ते खाद, बीज और उनके उपजाए अनाज की वाजिब कीमत की। कभी अति वृष्टि और कभी अनावृष्टि से तबाह हो रही फसलों को बचाने की। क्या यह सच्चाई नहीं कि जिस तरह से और दिवस मनाए जाते हैं, किसानों का भी कोई दिवस भी होना चाहिए? प्रति वर्ष हजारों किसान खेती छोड़ रहे हैं। क्या कारण है कि पिछले बीस सालों में दो लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली है? क्या मरते अन्नदाताओं के प्रति सरकार की कोई जवावदेही नहीं है?
देशवासियों ने आपको अपार जनसमर्थन दिया इस उम्मीद में कि आप उन्हें अच्छे दिन दिखाएंगे। लेकिन आपके कुछ महीनों के शासन में लोगों को निराशा हुई है। उम्मीद करते हैं कि आपने जो सपने लोगों को दिखाए हैं, आने वाले समय में उन्हें साकार करेंगे। तभी आपका मन की बात करना सार्थक होगा।
अशोक कुमार, तेघड़ा, बेगूसराय
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta