बाल श्रम बच्चों के मानसिक संतुलन, मानसिक विकार और सेहत को प्रभावित करने के साथ-साथ सामाजिक और पर्यावरणीय विचार से दूर रखता है, जो बच्चे में किसी वस्तु के प्रति समाज और परिवार के प्रति नकारात्मकता की उलझन में फंसा देता है। बाल श्रम और शोषण ने बच्चे के जीवन को बर्बाद करने का जिम्मा ले रखा है। हर बच्चे का मन करता है कि वह खेले, कूदे, पढ़े-लिखे और बचपन को समझे, लेकिन गरीबी और आर्थिक तंगी उसे जीवन की हर खुशी से दूर कर देती है। बच्चा समझ नहीं पाता है कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
हमारे देश में कानूनन यह कहा गया है कि चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चे को किसी प्रकार के जोखिम भरा काम, कारखाने और खनन विभाग के क्षेत्र में रखना दंडनीय अपराध है। लेकिन शोषक वर्ग खनन क्षेत्र या जोखिम भरे कामों को करने के लिए कम पैसे में अत्यधिक काम करवाना बेहतर विकल्प के रूप में समझते हैं। जरा सोचिए कि एक गरीबी और आर्थिक तंगी की मार झेलते बच्चे को प्रकारांतर से गुलाम बनना पड़े और वह शोषण का शिकार हो तो देश का
भविष्य कैसे टिकेगा!
बाल श्रम के खिलाफ सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है कहते है। बच्चे का भविष्य बेहतर होगा तो देश बचेगा और प्रत्येक नागरिक का भविष्य सुगम और सुरक्षित होगा। बाल श्रम कानून के जो नियम और प्रावधान हैं, उसका सख्ती से पालन हो। इसके साथ-साथ व्यापक पैमाने पर रोजगार को बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि कोई गरीब परिवार अपने बच्चों को बाल श्रम के जाल में झोंकने से बच सके।
’एस कुमार चंदवारा, वैशाली, बिहार</p>
हांगकांग की राह
सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। यह कहावत शायद केवल किताबों में अच्छा लगता है। हकीकत में आज सत्य का गला घोंटा जा रहा है। हांगकांग में कुछ वर्ष पहले तक लगता था दुनिया का सबसे अच्छा लोकतंत्र है। व्यापार का सबसे बड़ा अड्डा है। मगर आज उसकी हालत एकदम बेचारगी वाली हो गई है। 1995 से प्रकाशित हो रहे, लोकतंत्र समर्थक अखबार ‘एप्पल डेली’ का 24 जून को अंतिम प्रकाशन हुआ। इसी के साथ उस देश के लिए लोकतंत्र समर्थकों के आंदोलन को भी एक बड़ा धक्का लगा है। चीन ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून वाले तीर से आजाद विचारधारा का खून कर दिया है। अब हांगकांग में लोग तो वही रहेंगे, मगर नियम चीन के लागू होंगे। जो सड़क पर प्रदर्शन करेगा, उसके साथ क्या होगा, कहा नहीं जा सकता।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड</p>
पर्यावरण के लिए
स्कूलों में विद्यार्थियों को अतिरिक्त अंकों के आधार पर हरियाणा सरकार का पौधरोपण अभियान एक अच्छी पहल है। मगर आमतौर पर स्कूलों में पहले ही सीमित जगह होती है जो विद्यार्धियों की संख्या को देखते हुए बहुत कम है। इसके लिए स्कूल के साथ-साथ और ज्यादा जगह की जरूरत है, जिसके लिए निकटवर्ती भूभाग, पार्क, सड़क, नदी और नालों के किनारों को सुरक्षित तरीके से प्रयोग किया जा सकता है, जहां बिजली की लाइनें न हों। पर्यावरण संरक्षण और प्राणवायु आॅक्सीजन आज हम सभी के लिए जरूरी है। पौधरोपण पर प्रति वर्ष सरकारें बड़े-बड़े वादे और घोषणाएं जरूर करती हैं, मगर उसकी असलियत सभी जानते हैं। इसलिए पौधरोपण से पहले उचित स्थान और इनके लगाने वालों और देखभाल करने वालों की सही व्यवस्था भी हो, जिससे अमूल्य समय, श्रम, धन, ऊर्जा का सही उपयोग हो सके।
’वेद मामूरपुर, नरेला, दिल्ली</p>