भारत के एक अगस्त से अस्थायी सुरक्षा परिषद् सदस्य देशों का अध्यक्ष पद संभालने को लेकर खूब चर्चा हो रही है। यह अच्छी बात है कि भारत को पहली बार अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त हो रहा है। हालांकि यह आठवीं बार है जब भारत एक अस्थायी सदस्य के रूप में चुना गया है। अध्यक्ष का पद भी सिर्फ एक माह के लिए ही है।
हम अपनी इच्छा से बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकेंगे। इस स्थिति विकास को संयुक्त राष्ट्र का सुधार भी नहीं कहा जाएगा। जब तक कि भारत समेत दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, जर्मनी और जापान जैसे देशों को स्थायी सदस्यता नहीं मिल जाती, तब तक अध्यक्षता का कोई फायदा नहीं है। वजह यह है कि अगर कोई सदस्य देश या अध्यक्ष कोई भी प्रस्ताव या बिल लेकर आएंगे तो उसे स्थायी देशों के रूप में चीन, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका या फ्रांस अगर चाहेंगे तो वीटो करके निरस्त कर देंगे। इसलिए अप्रसांगिकता के द्वार पर खड़े संयुक्त राष्ट्र को तत्काल सुधारों की जरूरत है।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड</p>
विकल्प की ऊर्जा
परंपरागत साधनों के महंगे होने के दौर में अब विभिन्न क्षेत्रों में उसके विकल्पों को अंगीकार करना होगा, ताकि दबाव कम होने के साथ ही आर्थिक सेहत भी बिगड़ने से बचे। बिजली बहुआयामी होने के साथ ही आम उपयोगी है। अब ऐसे हालात में बिजली के विकल्प सौर ऊर्जा को अपनाना ही होगा। कभी लालटेन, चिमनी पर निर्भर रहने वाले लोग आज पूरी तरह बिजली पर आश्रित हो गए हैं। खाना बनाने के साधन से लेकर मानव जीवन के लिए हर जरूरी चीजों के लिए बिजली अब अनिवार्य-सी हो गई है। इसी वजह से इसका उपयोग बढ़ा है जो महंगा साबित हो रहा है। हालांकि बिजली की बर्बादी भी महंगाई की एक वजह है। बढ़ते संसाधनों के बीच अगर सौर ऊर्जा का विकल्प अपनाया जाए तो यह सस्ता और बार-बार बिल भरने की झंझट से भी मुक्ति दिलाएगा। लोगों को अब इस मामले में दिलचस्पी लेना चाहिए और अपनी बिजली आपूर्ति के लिए सौर ऊर्जा को अपनाना चाहिए।
’अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र