पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, बिल गेट्स और एलन मस्क जैसे उद्योगपति और एप्पल, उबर जैसी कंपनियों के ट्विटर हैंडलों की हैकिंग ने एक बार फिर यह साबित किया है कि डिजिटल सुरक्षा को सुनिश्चित करना मुश्किल होता जा रहा है। हैकरों ने इन हैंडलों का इस्तेमाल करके यह भी बता दिया है कि डिजिटल मुद्रा और लेन-देन किस तरह जोखिम से भरा है। सूचना तकनीक और डिजिटल यंत्र मानव सभ्यता के अभिन्न अंग बन चुके हैं। हमारे जीवन का शायद ही ऐसा कोई पक्ष है जो इंटरनेट, स्मार्टफोन, कंप्यूटरों के संजाल से मुक्त हो। ऐसे में न केवल साइबर अपराधी सेंधमारी करते हैं, बल्कि देशों की आपसी दुश्मनी का दरवाजा भी यहां खुल गया है।

हालांकि डिजिटल क्षेत्र में सक्रीय कंपनियों और सॉफ्टवेयर के माहिरों द्वारा इंटरनेट और कप्यूंटर व्यवस्था को सुरक्षित करने के तमाम उपाय किए जा रहे हैं, पर हैकिंग की बढ़ती संख्या और दायरे को देखें तो साफ पता चलता है कि हैकर कुछ कदम आगे चल रहे हैं। पिछले कुछ सालों से करोड़ों लोग साइबर ठगी और फजीर्वाड़े का शिकार हो चुके हैं और अरबों डॉलर चुराए जा चुके हैं। संवेदनशील डाटा या आंकड़े और गोपनीय दस्तावेजों के बारे में आंकलन कर पाना संभव नहीं है। कुछ मामलों में तो यह भी पाया गया है कि इंटरनेट पर सेवा मुहैया करा रही या सोशल मीडिया मंच चला रही कंपनियों द्वारा अनजाने में या जान-बूझकर की गई लापरवाही का फायदा भी हैकरों या डेटा चोरों ने उठाया है।

आलम यह है कि बैंक खातों, डेबिट कार्ड, आनलाइन लेन-देन के एप आदि से चोरी तो मामूली बात हो चुकी है। सरकारी विभागों और कंपनियों को हैक करना भी मामूली बात बन चुकी है। समुचित साइबर कानूनों का अभाव तथा पुलिस प्रशासन की चूक से भी हैकरों का मनोबल बढ़ता है। एक बड़ी चुनौती यह भी है कि हैकरों के गिरोह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिखरे हुए हैं या किसी अन्य देशों से अपनी करतूतों को अंजाम देते हैं, यह साफ नहीं है।

अब तो ऐसे भी मामले सामने आने लगे हैं जिसमें हैकर देश के भीतर या बाहर किसी दूसरे कंप्यूटर या डिजिटल पहचान का इस्तेमाल करते हैं। इस पहलू पर गंभीरता से सवाल करने की जरूरत है। जब बेहद प्रभावशाली लोगों और अरबों-खरबों के टर्नओवर वाली कंपनियों के सोशल मीडिया खातों को बड़े पैमाने पर हैक किया जा सकता है तथा सरकारी फाइलों की चोरी हो सकती है तो आम लोगों का डाटा या खाते कैसे सुरक्षित रह सकते हैं!
चौ भूपेंद्र सिंह रंगा, हरियाणा

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